Class 11 Hindi Notes Chapter 6 (शमशेर बहादुर सिह: उषा) – Aroh Book

Aroh
नमस्ते विद्यार्थियों।

चलिए, आज हम आपकी आरोह पुस्तक के अध्याय 6, 'उषा', जिसके रचयिता शमशेर बहादुर सिंह हैं, का गहन अध्ययन करेंगे। यह अध्याय प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें बिंबों और उपमानों का बहुत सुंदर प्रयोग हुआ है।


अध्याय 6: उषा (कवि - शमशेर बहादुर सिंह)

विस्तृत नोट्स (परीक्षा की तैयारी हेतु)

1. कवि परिचय: शमशेर बहादुर सिंह (1911-1993)

  • युग: इन्हें प्रयोगवादी कवि माना जाता है। ये 'दूसरा सप्तक' के प्रमुख कवियों में से एक हैं।
  • उपाधि: इन्हें "कवियों का कवि" भी कहा जाता है। यह उपाधि अज्ञेय ने दी थी।
  • काव्य-शैली: शमशेर बहादुर सिंह बिंबधर्मी कवि के रूप में विख्यात हैं। वे अपनी कविताओं में शब्दों के माध्यम से चित्र खींच देते हैं। उनकी कविता में इंद्रियों के अनुभव (देखना, सुनना, महसूस करना) साकार हो उठते हैं।
  • भाषा: इनकी भाषा में खड़ी बोली के साथ-साथ उर्दू शायरी का प्रभाव भी देखने को मिलता है।
  • प्रमुख रचनाएँ: कुछ और कविताएँ, चुका भी हूँ नहीं मैं, इतने पास अपने।

2. 'उषा' कविता का सार

यह कविता सूर्योदय से ठीक पहले के पल-पल परिवर्तित होते प्रकृति के सौंदर्य का शब्द-चित्र है। कवि ने भोर (उषा) के आकाश का वर्णन करने के लिए ग्रामीण परिवेश से लिए गए घरेलू उपमानों (बिंबों) का प्रयोग किया है, जो इस कविता को अनूठा बनाते हैं।

कविता की प्रगति इस प्रकार है:

  1. पहला दृश्य: भोर का आकाश 'बहुत नीले शंख' जैसा पवित्र और गहरा नीला है।
  2. दूसरा दृश्य: थोड़ी देर बाद, आकाश ऐसा लगता है जैसे 'राख से लीपा हुआ चौका' हो, जो अभी गीला पड़ा है। यह नमी और पवित्रता का प्रतीक है।
  3. तीसरा दृश्य: फिर आकाश ऐसा प्रतीत होता है मानो 'बहुत काली सिल' को 'लाल केसर' से धो दिया गया हो। यहाँ कालिमा में लाली का मिश्रण है।
  4. चौथा दृश्य: अगला दृश्य है 'स्लेट पर या लाल खड़िया चाक' मलने का। यह भोर के आकाश में फैलती लालिमा का सुंदर बिंब है।
  5. अंतिम दृश्य: अंत में, जब सूर्योदय होता है, तो ऐसा लगता है मानो 'नीले जल में किसी गोरी युवती का शरीर' झिलमिला रहा हो।
  6. जादू का टूटना: सूर्योदय होते ही उषा का यह सारा जादू (पल-पल बदलता सौंदर्य) टूट जाता है।

3. काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं काव्य सौंदर्य

काव्यांश 1:

प्रात नभ था: बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)

  • प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' में संकलित कविता 'उषा' से ली गई हैं। इसके रचयिता प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। यहाँ कवि ने भोर के समय आकाश के बदलते सौंदर्य का वर्णन किया है।
  • व्याख्या: कवि कहते हैं कि सुबह का आकाश ऐसा गहरा नीला था जैसे कोई नीला शंख हो। यहाँ शंख से तुलना उसकी पवित्रता, नीलिमा और ध्वनि-बिंब की ओर संकेत करती है। कुछ ही क्षण बाद, भोर का आकाश ऐसा लगने लगा मानो किसी ने राख से चौके (रसोईघर का फर्श) को लीपा हो और वह अभी भी गीला हो। गीलापन आकाश की नमी और ताज़गी को दर्शाता है, जबकि राख का रंग स्लेटी-नीले आकाश का प्रतीक है।
  • काव्य सौंदर्य:
    • अलंकार: 'बहुत नीला शंख जैसे' में उपमा अलंकार है। 'राख से लीपा हुआ चौका' में भी उपमा है।
    • बिंब: चाक्षुष (दृश्य) बिंब का अद्भुत प्रयोग है (शंख, चौका)।
    • भाषा: सरल, सहज खड़ी बोली।
    • शैली: चित्रात्मक शैली।
    • विशेष: कोष्ठक '(अभी गीला पड़ा है)' का प्रयोग एक विशेष अर्थ (नमी और ताज़गी) भरने के लिए किया गया है।

काव्यांश 2:

बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने

  • प्रसंग: पूर्ववत्। कवि भोर के आकाश में हो रहे परिवर्तनों का वर्णन आगे बढ़ाते हैं।
  • व्याख्या: अब भोर के अँधेरे (काली सिल) में सूर्य की हल्की लालिमा (लाल केसर) घुलने लगी है। यह दृश्य ऐसा लग रहा है मानो किसी ने काली सिलबट्टे को ज़रा से लाल केसर से धो दिया हो। अगला दृश्य ऐसा है मानो किसी बच्चे ने काली स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दी हो। ये दोनों ही बिंब ग्रामीण जीवन से लिए गए हैं और भोर के बदलते रंगों को सजीव कर देते हैं।
  • काव्य सौंदर्य:
    • अलंकार: 'जैसे धुल गई हो' में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
    • बिंब: ग्रामीण परिवेश से लिए गए घरेलू बिंब (सिल, स्लेट) हैं।
    • विशेष: कवि ने स्थिर बिंबों में गतिशीलता का आभास कराया है, जिसे 'गतिशील बिंब' कहते हैं।

काव्यांश 3:

नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और...
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।

  • प्रसंग: पूर्ववत्। यहाँ कवि सूर्योदय के क्षण का वर्णन कर रहे हैं।
  • व्याख्या: भोर का आकाश अब नीला हो गया है और उसमें उदित होता हुआ सूरज ऐसा लग रहा है मानो नीले जल में किसी गोरी युवती का सुंदर शरीर झिलमिला रहा हो। यहाँ नीला आकाश 'नील जल' का और उगता हुआ सूरज 'गौर झिलमिल देह' का प्रतीक है। यह उषा का सबसे आकर्षक और अंतिम दृश्य है। लेकिन जैसे ही सूर्य पूरी तरह उदित हो जाता है, उषा का यह पल-पल रंग बदलने वाला जादू समाप्त हो जाता है।
  • काव्य सौंदर्य:
    • अलंकार: 'जैसे हिल रही हो' में उत्प्रेक्षा अलंकार है। 'गौर झिलमिल देह' में मानवीकरण का पुट है।
    • बिंब: गतिशील चाक्षुष बिंब का सुंदर उदाहरण है।
    • भाषा: तत्सम और तद्भव शब्दों का सुंदर मिश्रण।
    • संदेश: प्रकृति का सौंदर्य क्षणभंगुर और परिवर्तनशील है।

अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)

प्रश्न 1: 'उषा' कविता के रचयिता कौन हैं?
(क) सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
(ख) जयशंकर प्रसाद
(ग) शमशेर बहादुर सिंह
(घ) रघुवीर सहाय

प्रश्न 2: कवि ने भोर के आकाश की तुलना प्रारंभ में किससे की है?
(क) नीले कमल से
(ख) नीले शंख से
(ग) नीले सागर से
(घ) नीली झील से

प्रश्न 3: 'राख से लीपा हुआ चौका' के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं?
(क) आकाश में बादल छाए हैं
(ख) आकाश राख जैसा मैला है
(ग) भोर का आकाश नम और पवित्र है
(घ) गाँव में सुबह हो गई है

प्रश्न 4: 'काली सिल' और 'लाल केसर' किसके प्रतीक हैं?
(क) रात और दिन
(ख) अंधकारमय आकाश और सूर्य की लाली
(ग) दुःख और सुख
(घ) पत्थर और फूल

प्रश्न 5: "नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह" - इस पंक्ति में 'गौर झिलमिल देह' किसे कहा गया है?
(क) चाँद को
(ख) किसी युवती को
(ग) भोर के तारे को
(घ) उदित होते हुए सूरज को

प्रश्न 6: शमशेर बहादुर सिंह को किस काव्य-धारा का कवि माना जाता है?
(क) छायावाद
(ख) प्रगतिवाद
(ग) प्रयोगवाद
(घ) नई कविता

प्रश्न 7: कविता में उषा का जादू किसके आने पर टूट जाता है?
(क) चंद्रमा के
(ख) सूर्योदय होने पर
(ग) बादल घिर आने पर
(घ) शाम होने पर

प्रश्न 8: 'स्लेट पर या लाल खड़िया चाक' मलने का बिंब आकाश की किस अवस्था को दर्शाता है?
(क) पूर्ण अंधकार
(ख) गहरी नीलिमा
(ग) हल्के अंधकार पर फैलती सूर्य की लाली
(घ) पूर्ण सूर्योदय

प्रश्न 9: इस कविता की मुख्य विशेषता क्या है?
(क) ओजपूर्ण भाषा का प्रयोग
(ख) ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण
(ग) नवीन घरेलू बिंबों का प्रयोग
(घ) दार्शनिक विचारों की प्रस्तुति

प्रश्न 10: शमशेर बहादुर सिंह को क्या उपाधि दी गई है?
(क) कवियों के कवि
(ख) महाप्राण
(ग) कथा सम्राट
(घ) कलम का सिपाही


उत्तरमाला:

  1. (ग), 2. (ख), 3. (ग), 4. (ख), 5. (घ), 6. (ग), 7. (ख), 8. (ग), 9. (ग), 10. (क)

इन नोट्स को अच्छी तरह से पढ़ें और प्रश्नों का अभ्यास करें। आपकी परीक्षा के लिए शुभकामनाएँ

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