Class 11 Hindi Notes Chapter 8 (तुलसीदास: कवितावली (उत्तर कांड से); लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप) – Aroh Book

चलिए, आज हम गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित अध्याय 'कवितावली (उत्तर कांड से)' और 'लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप' का गहन अध्ययन करेंगे। यह अध्याय परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसलिए इसके हर पहलू को ध्यान से समझना आवश्यक है।
अध्याय - 8: तुलसीदास
(कवितावली (उत्तर कांड से); लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप)
कवि परिचय: गोस्वामी तुलसीदास (1532-1623)
- जन्म: उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में।
- गुरु: नरहरिदास।
- भक्ति: इनकी भक्ति 'दास्य भाव' की थी, जिसमें वे स्वयं को दास और प्रभु राम को अपना स्वामी मानते थे।
- प्रमुख रचनाएँ: रामचरितमानस (अवधी में), कवितावली (ब्रजभाषा में), गीतावली, दोहावली, विनयपत्रिका, कृष्णगीतावली आदि।
- भाषा: तुलसीदास जी ने मुख्य रूप से अवधी और ब्रजभाषा दोनों में समान अधिकार के साथ रचनाएँ की हैं। 'रामचरितमानस' जहाँ अवधी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है, वहीं 'कवितावली' और 'विनयपत्रिका' ब्रजभाषा की उत्कृष्ट रचनाएँ हैं।
भाग 1: कवितावली (उत्तर कांड से)
यह अंश तुलसीदास की रचना 'कवितावली' के उत्तर कांड से लिया गया है। इन छंदों में तुलसीदास ने अपने समय के समाज की आर्थिक और सामाजिक दुर्दशा का यथार्थवादी चित्रण किया है।
पद 1: "किसबी, किसान-कुल..."
सार और व्याख्या:
इस कवित्त में तुलसीदास जी तत्कालीन समाज में फैली भयंकर गरीबी और बेरोज़गारी का चित्रण करते हैं। वे कहते हैं कि मज़दूर, किसान, व्यापारी, भिखारी, नौकर-चाकर, कलाकार, बाज़ीगर - सभी का पेट की आग बुझाने के लिए परेशान हैं। पेट की इस आग को बुझाने के लिए लोग धर्म-अधर्म और ऊँच-नीच का विचार किए बिना कोई भी काम करने को तैयार हैं, यहाँ तक कि अपने बेटे-बेटी को बेचने पर भी मजबूर हैं।
तुलसीदास कहते हैं कि यह 'पेट की आग' समुद्र की आग (बड़वाग्नि) से भी बड़ी है। इस आग को केवल एक ही शक्ति बुझा सकती है - राम रूपी घनश्याम (बादल)। जब राम की कृपा रूपी वर्षा होगी, तभी समाज की यह भुखमरी और पीड़ा शांत होगी।
विशेष बिंदु:
- भाषा: शुद्ध, साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग।
- छंद: कवित्त छंद।
- रस: करुण रस और शांत रस का सुंदर समन्वय।
- मुख्य समस्या: पेट की आग (आजीविका का संकट)।
- समाधान: राम की भक्ति और कृपा।
- अलंकार: 'राम-घनश्याम' में रूपक अलंकार है। अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
पद 2: "खेती न किसान को..."
सार और व्याख्या:
इस सवैये में तुलसीदास जी अपनी और समाज की स्थिति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि समाज में इतनी दरिद्रता और बेकारी है कि किसान के पास खेती नहीं है, भिखारी को भीख नहीं मिलती, व्यापारी का व्यापार नहीं चलता और नौकरीपेशा लोगों के पास नौकरी नहीं है। आजीविका के साधन समाप्त हो गए हैं, इसलिए लोग चिंतित हैं और एक-दूसरे से पूछते हैं, "कहाँ जाएँ, क्या करें?"
तुलसीदास वेदों और पुराणों का संदर्भ देते हुए कहते हैं कि जब-जब संसार पर संकट आया है, तब-तब प्रभु राम ने ही कृपा की है। वे कहते हैं कि हे दरिद्रता रूपी रावण, तुमने पूरे संसार को त्रस्त कर दिया है, अब तो प्रभु राम ही इस संकट से उबार सकते हैं।
विशेष बिंदु:
- भाषा: ब्रजभाषा।
- छंद: सवैया।
- मुख्य भाव: बेरोज़गारी और दरिद्रता से उत्पन्न हताशा।
- अलंकार: 'दारिद-दसानन' (दरिद्रता रूपी रावण) में रूपक अलंकार है।
पद 3: "धूत कहौ, अवधूत कहौ..."
सार और व्याख्या:
इस अंश में तुलसीदास समाज के तानों और जातिगत भेदभाव पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं। वे कहते हैं कि मुझे कोई धूर्त (धूत) कहे या संन्यासी (अवधूत), राजपूत कहे या जुलाहा, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे किसी की बेटी से अपने बेटे का विवाह नहीं करना है, जिससे मुझे किसी की जाति से कोई मतलब हो। मैं तो राम का गुलाम हूँ और सारा संसार मुझे इसी रूप में जानता है। जिसे जो अच्छा लगे, वह वही कहे। मैं तो माँगकर खा सकता हूँ और मस्जिद में सो सकता हूँ, मुझे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है।
विशेष बिंदु:
- भाव: सामाजिक सरोकारों से तटस्थता और राम-भक्ति में पूर्ण समर्पण।
- तुलसी का स्वाभिमान: वे किसी पर निर्भर नहीं हैं। 'माँगि कै खैबौ, मसीत को सोइबो' पंक्ति उनके स्वाभिमान और सामाजिक समरसता के भाव को दर्शाती है।
- भाषा: सरल एवं प्रवाहमयी ब्रजभाषा।
भाग 2: लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप
यह अंश 'रामचरितमानस' के लंका कांड से लिया गया है। यह प्रसंग उस समय का है जब मेघनाद के शक्ति-बाण से लक्ष्मण मूर्च्छित हो जाते हैं और हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने जाते हैं।
सार और व्याख्या:
- हनुमान की प्रतीक्षा और राम का विलाप: संजीवनी बूटी लाने गए हनुमान जी को आने में देर हो रही है। आधी रात बीत चुकी है। श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण को गोद में लेकर विलाप कर रहे हैं। वे एक साधारण मनुष्य की तरह ("नर लीला") दुःख और शोक में डूबे हुए हैं।
- राम की आत्मग्लानि: राम कहते हैं, "हे भाई, मैं तुम्हें कभी दुःखी नहीं देख सकता था। तुम्हारा स्वभाव सदा से ही कोमल था। मेरे लिए ही तुमने माता-पिता और अयोध्या के सारे सुख छोड़ दिए और वन में धूप, ठंड और तूफ़ान सहे।"
- भ्रातृ-प्रेम का चरम: राम कहते हैं कि अगर मुझे पता होता कि वन में भाई का बिछोह सहना पड़ेगा, तो मैं पिता का वचन भी नहीं मानता। संसार में पुत्र, धन, स्त्री, घर-परिवार सब कुछ मिल सकता है, लेकिन सगा भाई दोबारा नहीं मिलता।
- अयोध्या लौटने का भय: राम चिंतित हैं कि वे अयोध्या जाकर क्या जवाब देंगे। लोग कहेंगे कि अपनी पत्नी के लिए भाई को गँवा दिया। पत्नी की हानि कोई विशेष हानि नहीं है, लेकिन भाई को खोना असहनीय है।
- हनुमान का आगमन: जब राम इस प्रकार विलाप कर रहे होते हैं, तभी हनुमान जी संजीवनी बूटी सहित पूरा पर्वत लेकर आ जाते हैं। उनके आगमन से वानर सेना में उत्साह और आशा की लहर दौड़ जाती है। वैद्य सुषेण तुरंत उपचार करते हैं और लक्ष्मण जी उठकर बैठ जाते हैं।
- लक्ष्मण का उठना और राम का आभार: लक्ष्मण के उठने पर राम उन्हें गले से लगा लेते हैं। सभी वानर-भालू प्रसन्न हो जाते हैं। हनुमान जी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए राम कहते हैं कि हनुमान, तुम मेरे लिए भरत के समान ही प्रिय भाई हो।
विशेष बिंदु:
- भाषा: साहित्यिक अवधी।
- छंद: दोहा, चौपाई और सोरठा छंद का प्रयोग।
- रस: करुण रस की प्रधानता है।
- राम का मानवीकरण: यहाँ ईश्वर राम को एक साधारण मनुष्य की तरह विलाप करते दिखाया गया है, जो उनके चरित्र को और भी मार्मिक और relatable बनाता है।
- प्रमुख संदेश: भ्रातृ-प्रेम का आदर्श रूप प्रस्तुत किया गया है।
परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
प्रश्न 1: 'कवितावली' के उत्तर कांड में तुलसीदास ने किस प्रमुख समस्या का चित्रण किया है?
(क) धार्मिक पाखंड
(ख) पेट की आग (आजीविका का संकट)
(ग) नारी अपमान
(घ) युद्ध की विभीषिका
प्रश्न 2: तुलसीदास के अनुसार, पेट की आग को कौन बुझा सकता है?
(क) राजा का धन
(ख) परिश्रम
(ग) राम रूपी घनश्याम
(घ) समाज का सहयोग
प्रश्न 3: 'लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप' प्रसंग रामचरितमानस के किस कांड से लिया गया है?
(क) अयोध्या कांड
(ख) अरण्य कांड
(ग) किष्किंधा कांड
(घ) लंका कांड
प्रश्न 4: श्री राम किस बात को लेकर विलाप कर रहे थे?
(क) सीता का हरण हो जाने पर
(ख) लक्ष्मण के मूर्च्छित हो जाने पर
(ग) रावण की शक्ति देखकर
(घ) पिता का वचन याद करके
प्रश्न 5: 'लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप' की भाषा क्या है?
(क) ब्रजभाषा
(ख) अवधी
(ग) खड़ी बोली
(घ) संस्कृत
प्रश्न 6: "जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू।।" - इस पंक्ति में राम का कौन-सा भाव प्रकट होता है?
(क) क्रोध
(ख) निराशा
(ग) भाई के प्रति अत्यधिक प्रेम और दुःख
(घ) पिता के प्रति अनादर
प्रश्न 7: संजीवनी बूटी लाने के लिए कौन गया था?
(क) जामवंत
(ख) सुग्रीव
(ग) हनुमान
(घ) अंगद
प्रश्न 8: "दारिद-दसानन" में कौन-सा अलंकार है?
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) यमक
(घ) श्लेष
प्रश्न 9: 'माँगि कै खैबौ, मसीत को सोइबो' - यह पंक्ति तुलसीदास के किस भाव को दर्शाती है?
(क) उनकी गरीबी को
(ख) उनके आलस्य को
(ग) उनके स्वाभिमान और सामाजिक समरसता को
(घ) उनकी मजबूरी को
प्रश्न 10: श्री राम ने हनुमान की तुलना किससे की है?
(क) सुग्रीव से
(ख) लक्ष्मण से
(ग) विभीषण से
(घ) भरत से
उत्तरमाला:
- (ख) पेट की आग (आजीविका का संकट)
- (ग) राम रूपी घनश्याम
- (घ) लंका कांड
- (ख) लक्ष्मण के मूर्च्छित हो जाने पर
- (ख) अवधी
- (ग) भाई के प्रति अत्यधिक प्रेम और दुःख
- (ग) हनुमान
- (ख) रूपक
- (ग) उनके स्वाभिमान और सामाजिक समरसता को
- (घ) भरत से
इन नोट्स को अच्छी तरह से दोहराएँ। विशेष रूप से भाषा, छंद, अलंकार और मुख्य भावों पर ध्यान दें। शुभकामनाएँ