Class 11 Political Science Notes Chapter 10 (संविधान का राजनीतिक दर्शन) – Bharat ka Samvidhant Sidhant aur Vyavhar Book

Bharat ka Samvidhant Sidhant aur Vyavhar
प्रिय विद्यार्थियों,

आज हम आपकी कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पुस्तक 'भारत का संविधान: सिद्धांत और व्यवहार' के अध्याय 10 'संविधान का राजनीतिक दर्शन' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय न केवल आपको संविधान के मूल सिद्धांतों को समझने में मदद करेगा, बल्कि सरकारी परीक्षाओं के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संविधान के गहन वैचारिक आधारों पर प्रकाश डालता है।


अध्याय 10: संविधान का राजनीतिक दर्शन

परिचय:
संविधान केवल नियमों और कानूनों का एक संग्रह मात्र नहीं है, बल्कि यह एक राष्ट्र के सपनों, आकांक्षाओं और मूल्यों का दर्पण होता है। 'संविधान का राजनीतिक दर्शन' से हमारा तात्पर्य संविधान में निहित उन नैतिक आदर्शों, सिद्धांतों और विचारों को समझना है, जो इसके विभिन्न प्रावधानों को आधार प्रदान करते हैं। यह हमें बताता है कि संविधान निर्माता किस प्रकार के समाज की कल्पना कर रहे थे और वे किन मूल्यों को स्थापित करना चाहते थे।

1. संविधान को दर्शन के रूप में देखने का क्या अर्थ है?
संविधान को दर्शन के रूप में देखने का अर्थ है:

  • मूल्यों की पहचान: संविधान के पीछे छिपे नैतिक और दार्शनिक मूल्यों को समझना।
  • तर्क और औचित्य: यह जानना कि संविधान के विभिन्न प्रावधानों को क्यों और किस तर्क के आधार पर बनाया गया है।
  • आदर्श समाज की परिकल्पना: संविधान निर्माताओं ने जिस आदर्श समाज की कल्पना की थी, उसे समझना।
  • जीवंत दस्तावेज: संविधान को केवल एक स्थिर कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि एक जीवंत और विकसित होने वाले विचार के रूप में देखना।

2. संविधान का दार्शनिक पक्ष: प्रमुख मूल्य और सिद्धांत

भारतीय संविधान कई महत्वपूर्ण दार्शनिक मूल्यों पर आधारित है, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:

क) व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Individual Liberty):

  • अर्थ: व्यक्ति को अपने विचारों को व्यक्त करने, अपनी पसंद के अनुसार जीवन जीने और अपनी क्षमताओं का विकास करने की स्वतंत्रता।
  • भारतीय संदर्भ: भारतीय संविधान स्वतंत्रता को केवल बाहरी प्रतिबंधों (नकारात्मक स्वतंत्रता) से मुक्ति के रूप में ही नहीं, बल्कि व्यक्ति की गरिमा और आत्म-सम्मान (सकारात्मक स्वतंत्रता) के विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियों के रूप में भी देखता है।
  • उदाहरण: मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 19 - भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अनुच्छेद 21 - जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता, अनुच्छेद 25-28 - धार्मिक स्वतंत्रता)। यह दलितों, महिलाओं और अन्य वंचित समूहों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग करने से रोका गया था।

ख) समानता (Equality):

  • अर्थ: सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के समान अवसर और सम्मान मिलना चाहिए।
  • भारतीय संदर्भ: भारतीय संविधान औपचारिक समानता (कानून के समक्ष समानता) के साथ-साथ वास्तविक समानता (सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को दूर करना) पर भी जोर देता है।
  • उदाहरण:
    • कानून के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14): सभी नागरिक कानून की नजर में समान हैं।
    • भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15): धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं।
    • अवसर की समानता (अनुच्छेद 16): सार्वजनिक रोजगार में सभी को समान अवसर।
    • अस्पृश्यता का अंत (अनुच्छेद 17): सामाजिक असमानता का सबसे घृणित रूप समाप्त किया गया।
    • राज्य द्वारा सकारात्मक कार्रवाई: वंचित समूहों (SC, ST, OBC) के लिए आरक्षण जैसे विशेष प्रावधान वास्तविक समानता प्राप्त करने के लिए हैं।

ग) सामाजिक न्याय (Social Justice):

  • अर्थ: समानता से एक कदम आगे बढ़कर, यह सुनिश्चित करना कि समाज के वंचित और पिछड़े वर्गों को विशेष सहायता और अवसर मिलें ताकि वे दूसरों के बराबर आ सकें।
  • भारतीय संदर्भ: भारतीय संविधान सिर्फ भेदभाव को खत्म करने पर ही नहीं रुकता, बल्कि राज्य को यह अधिकार और जिम्मेदारी भी देता है कि वह सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए सकारात्मक कदम उठाए।
  • उदाहरण: राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP) में सामाजिक न्याय के कई प्रावधान हैं, जैसे समान काम के लिए समान वेतन, सभी के लिए आजीविका के पर्याप्त साधन, बच्चों और युवाओं का शोषण से बचाव। मौलिक अधिकारों में आरक्षण और विशेष प्रावधान भी इसी दर्शन का हिस्सा हैं।

घ) धर्मनिरपेक्षता (Secularism):

  • अर्थ: राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं होगा, और वह सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और तटस्थता का भाव रखेगा।
  • भारतीय संदर्भ: भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से भिन्न है।
    • पश्चिमी मॉडल: राज्य और धर्म के बीच पूर्ण अलगाव (राज्य धर्म में हस्तक्षेप नहीं करेगा)।
    • भारतीय मॉडल: राज्य धर्म से सैद्धांतिक दूरी बनाए रखता है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर धार्मिक मामलों में सुधार के लिए हस्तक्षेप कर सकता है (जैसे सती प्रथा, तीन तलाक पर कानून)। यह 'सर्वधर्म समभाव' (सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान) के सिद्धांत पर आधारित है।
  • उदाहरण: मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 25-28) धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करते हैं, जिसमें अंतःकरण की स्वतंत्रता, धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता शामिल है।

ङ) सार्वभौमिक मताधिकार (Universal Franchise):

  • अर्थ: बिना किसी जाति, लिंग, धर्म, शिक्षा या संपत्ति के भेदभाव के, एक निश्चित आयु प्राप्त करने वाले सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार।
  • भारतीय संदर्भ: संविधान निर्माताओं ने स्वतंत्रता के तुरंत बाद ही सार्वभौमिक मताधिकार को अपनाया, जो उस समय के कई विकसित देशों में भी नहीं था। यह लोकतंत्र में जनता की संप्रभुता और समानता में उनके गहरे विश्वास को दर्शाता है।

च) संघवाद (Federalism):

  • अर्थ: सरकार की शक्ति का केंद्र और राज्यों के बीच विभाजन, ताकि दोनों अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों में स्वायत्तता से कार्य कर सकें।
  • भारतीय संदर्भ: भारत एक विविध देश है, इसलिए संघवाद को अपनाया गया ताकि विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों की पहचान और स्वायत्तता को बनाए रखा जा सके। भारतीय संघवाद में केंद्र सरकार को कुछ मामलों में अधिक शक्तियां प्राप्त हैं, जिसे 'एकात्मक झुकाव वाला संघवाद' कहा जाता है।

छ) राष्ट्रीय पहचान (National Identity):

  • अर्थ: एक साझा नागरिकता और साझा संवैधानिक मूल्यों के आधार पर एक राष्ट्र के रूप में एकजुटता की भावना का निर्माण।
  • भारतीय संदर्भ: भारतीय संविधान का लक्ष्य एक ऐसी राष्ट्रीय पहचान बनाना था जो विविधताओं का सम्मान करे और उन्हें समायोजित करे, न कि उन्हें मिटाए। यह साझा संवैधानिक आदर्शों जैसे स्वतंत्रता, समानता, न्याय और धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है।

3. संविधान की आलोचनाएँ और सीमाएँ:

संविधान के दार्शनिक पक्ष को समझने के लिए इसकी कुछ आलोचनाओं और सीमाओं को जानना भी आवश्यक है:

  • क्या यह भारतीय परिस्थितियों के लिए अनुपयुक्त है? कुछ आलोचकों का मानना था कि संविधान पश्चिमी विचारों से अत्यधिक प्रभावित है और भारतीय परंपराओं (विशेषकर गांधीवादी ग्राम स्वराज) से दूर है।
  • क्या यह बहुत बड़ा और जटिल है? इसकी विस्तृत प्रकृति को लेकर भी आलोचना की गई, जिससे आम आदमी के लिए इसे समझना मुश्किल हो जाता है।
  • क्या यह कुलीन वर्ग का दस्तावेज है? संविधान सभा में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं था, जिससे कुछ लोगों ने इसे कुलीन वर्ग द्वारा बनाया गया दस्तावेज बताया।
  • सामाजिक-आर्थिक असमानता को पूरी तरह समाप्त करने में चुनौतियाँ: संविधान ने आदर्श स्थापित किए, लेकिन उनका पूर्ण क्रियान्वयन अभी भी एक चुनौती है। गरीबी, असमानता और सामाजिक भेदभाव आज भी मौजूद हैं।
  • नागरिकों की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता: संविधान तभी सफल हो सकता है जब नागरिक इसके मूल्यों को समझें और उनका पालन करें।

4. निष्कर्ष:

भारतीय संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जो समय के साथ विकसित होता रहा है। इसका राजनीतिक दर्शन हमें एक ऐसे समाज की ओर मार्गदर्शन करता है जहाँ स्वतंत्रता, समानता, न्याय और बंधुत्व सर्वोच्च हों। संविधान को केवल कानूनों का संग्रह मानने के बजाय, हमें इसके पीछे के गहरे दार्शनिक मूल्यों को समझना चाहिए और उन्हें अपने दैनिक जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। यह हमारे राष्ट्र के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।


अभ्यास प्रश्न (MCQs)

यहाँ अध्याय 10 'संविधान का राजनीतिक दर्शन' पर आधारित 10 बहुविकल्पीय प्रश्न दिए गए हैं:

  1. भारतीय संविधान का कौन सा दर्शन 'सर्वधर्म समभाव' के सिद्धांत पर आधारित है?
    क) संघवाद
    ख) धर्मनिरपेक्षता
    ग) सामाजिक न्याय
    घ) व्यक्तिगत स्वतंत्रता

  2. भारतीय संविधान में 'सकारात्मक कार्रवाई' (जैसे आरक्षण) का प्रावधान किस दार्शनिक मूल्य को प्राप्त करने के लिए किया गया है?
    क) नकारात्मक स्वतंत्रता
    ख) औपचारिक समानता
    ग) वास्तविक समानता
    घ) राजनीतिक स्वतंत्रता

  3. भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत अस्पृश्यता का अंत किया गया है, जो सामाजिक न्याय के दर्शन का एक महत्वपूर्ण पहलू है?
    क) अनुच्छेद 14
    ख) अनुच्छेद 15
    ग) अनुच्छेद 16
    घ) अनुच्छेद 17

  4. भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से किस प्रकार भिन्न है?
    क) भारतीय राज्य का एक आधिकारिक धर्म है।
    ख) भारतीय राज्य धर्म से पूर्ण अलगाव बनाए रखता है।
    ग) भारतीय राज्य धार्मिक मामलों में सुधार के लिए हस्तक्षेप कर सकता है।
    घ) भारतीय राज्य केवल एक धर्म को बढ़ावा देता है।

  5. 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता' के दर्शन में, भारतीय संविधान किस प्रकार की स्वतंत्रता पर अधिक जोर देता है?
    क) केवल नकारात्मक स्वतंत्रता (बाहरी प्रतिबंधों से मुक्ति)
    ख) केवल सकारात्मक स्वतंत्रता (विकास के लिए परिस्थितियाँ)
    ग) नकारात्मक और सकारात्मक दोनों स्वतंत्रताएँ
    घ) आर्थिक स्वतंत्रता

  6. भारतीय संविधान में सार्वभौमिक मताधिकार को अपनाने का मुख्य कारण क्या था?
    क) केवल शिक्षित लोगों को मतदान का अधिकार देना।
    ख) लोकतंत्र में जनता की संप्रभुता और समानता में विश्वास।
    ग) केवल पुरुषों को मतदान का अधिकार देना।
    घ) संपत्ति के आधार पर मतदान का अधिकार देना।

  7. भारतीय संविधान की आलोचना में अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि यह भारतीय परंपराओं से दूर है और ______________ विचारों से अत्यधिक प्रभावित है।
    क) गांधीवादी
    ख) समाजवादी
    ग) पश्चिमी
    घ) साम्यवादी

  8. भारतीय संविधान में 'संघवाद' का दर्शन किस उद्देश्य को पूरा करता है?
    क) केंद्र सरकार को सभी शक्तियाँ देना।
    ख) राज्यों को पूर्ण स्वतंत्रता देना।
    ग) विविधता का सम्मान करना और शक्ति का विकेंद्रीकरण करना।
    घ) एक एकात्मक शासन प्रणाली स्थापित करना।

  9. संविधान को 'जीवंत दस्तावेज' कहने का क्या अर्थ है?
    क) यह समय के साथ बदलता और विकसित होता रहता है।
    ख) यह केवल कानूनों का एक संग्रह है।
    ग) यह कभी नहीं बदल सकता।
    घ) यह केवल ऐतिहासिक महत्व का है।

  10. भारतीय संविधान के 'राष्ट्रीय पहचान' के दर्शन का मुख्य आधार क्या है?
    क) एक समान भाषा और संस्कृति।
    ख) एक साझा धर्म।
    ग) साझा संवैधानिक मूल्य और नागरिकता।
    घ) एक मजबूत केंद्रीय सरकार।


उत्तर कुंजी:

  1. ख) धर्मनिरपेक्षता
  2. ग) वास्तविक समानता
  3. घ) अनुच्छेद 17
  4. ग) भारतीय राज्य धार्मिक मामलों में सुधार के लिए हस्तक्षेप कर सकता है।
  5. ग) नकारात्मक और सकारात्मक दोनों स्वतंत्रताएँ
  6. ख) लोकतंत्र में जनता की संप्रभुता और समानता में विश्वास।
  7. ग) पश्चिमी
  8. ग) विविधता का सम्मान करना और शक्ति का विकेंद्रीकरण करना।
  9. क) यह समय के साथ बदलता और विकसित होता रहता है।
  10. ग) साझा संवैधानिक मूल्य और नागरिकता।

मुझे आशा है कि यह विस्तृत नोट्स और अभ्यास प्रश्न आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक सिद्ध होंगे। शुभकामनाएँ!

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