Class 11 Political Science Notes Chapter 3 (चुनाव और प्रतिनिधित्व) – Bharat ka Samvidhant Sidhant aur Vyavhar Book

Bharat ka Samvidhant Sidhant aur Vyavhar
प्रिय विद्यार्थियों,

आज हम कक्षा 11 राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक 'भारत का संविधान: सिद्धांत और व्यवहार' के अध्याय 3 'चुनाव और प्रतिनिधित्व' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं की तैयारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली के एक मूलभूत स्तंभ - चुनावों - की गहन समझ प्रदान करता है।


अध्याय 3: चुनाव और प्रतिनिधित्व

I. परिचय
लोकतंत्र में चुनाव एक ऐसी व्यवस्था है जिसके माध्यम से नागरिक अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। ये प्रतिनिधि जनता की ओर से शासन चलाते हैं और नीतियां बनाते हैं। एक मजबूत लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और नियमित चुनाव अनिवार्य हैं। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में चुनाव प्रणाली का सफल संचालन इसकी लोकतांत्रिक जड़ों की गहराई को दर्शाता है।

II. चुनाव प्रणाली
दुनिया में विभिन्न प्रकार की चुनाव प्रणालियाँ प्रचलित हैं। भारत ने अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुरूप एक विशेष प्रणाली अपनाई है, जिसमें दो मुख्य प्रणालियों का मिश्रण है:

A. सर्वाधिक मत से जीत की प्रणाली (First Past the Post System - FPTP / बहुलवादी प्रणाली)

  • अर्थ: इस प्रणाली को 'बहुलवादी प्रणाली' भी कहते हैं। इसमें पूरे देश को छोटी-छोटी भौगोलिक इकाइयों में बांटा जाता है, जिन्हें 'निर्वाचन क्षेत्र' कहते हैं। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है। जिस उम्मीदवार को अन्य सभी उम्मीदवारों से अधिक मत प्राप्त होते हैं, उसे विजयी घोषित किया जाता है, भले ही उसे कुल मतों का बहुमत (50% से अधिक) न मिला हो।
  • उदाहरण: भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव इसी प्रणाली से होते हैं।
  • विशेषताएँ:
    • एक निर्वाचन क्षेत्र से एक ही प्रतिनिधि।
    • सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाला विजयी।
    • जीतने वाले उम्मीदवार को बहुमत मिलना आवश्यक नहीं।
  • लाभ:
    • सरल और समझने में आसान: यह प्रणाली मतदाताओं के लिए सरल है और उन्हें अपने प्रतिनिधि को पहचानने में मदद करती है।
    • स्थिर सरकार: यह प्रणाली अक्सर स्पष्ट बहुमत वाली सरकारें बनाती है, जिससे राजनीतिक स्थिरता आती है।
    • मतदाताओं और प्रतिनिधियों के बीच सीधा संबंध: मतदाता सीधे अपने प्रतिनिधि को चुनते हैं, जिससे जवाबदेही बढ़ती है।
    • क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व: यह प्रणाली प्रत्येक क्षेत्र को अपना प्रतिनिधि भेजने का अवसर देती है।
    • गठबंधन सरकारों की संभावना कम: यह प्रणाली अक्सर एकल दल को बहुमत देती है, जिससे गठबंधन की आवश्यकता कम होती है।
  • हानियाँ:
    • कम मत प्रतिशत पर भी जीत: कई बार जीतने वाले उम्मीदवार को कुल मतों का बहुत कम प्रतिशत मिलता है, जिससे प्रतिनिधित्व की वैधता पर सवाल उठ सकते हैं।
    • छोटे दलों को नुकसान: छोटे दल, जिनका समर्थन पूरे देश में बिखरा होता है, उन्हें सीटें जीतने में कठिनाई होती है, भले ही उनके पास पर्याप्त संख्या में मतदाता हों।
    • प्रतिनिधित्व का विकृत होना: कभी-कभी किसी दल को कुल मतों के अनुपात में सीटें नहीं मिल पातीं।
    • हारने वाले मतों की बर्बादी: जीतने वाले को छोड़कर अन्य सभी उम्मीदवारों को दिए गए मत 'बर्बाद' माने जाते हैं।

B. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation - PR)

  • अर्थ: इस प्रणाली में प्रत्येक दल को संसद में उतनी ही सीटें मिलती हैं, जितने प्रतिशत मत उसे प्राप्त होते हैं। इसका उद्देश्य मतों के अनुपात में सीटों का वितरण सुनिश्चित करना है।
  • प्रकार:
    • सूची प्रणाली (List System): इसमें मतदाता किसी दल को वोट देते हैं, न कि उम्मीदवार को। दल पहले से ही उम्मीदवारों की एक सूची जारी करते हैं। दल को मिले मतों के अनुपात में सीटें मिलती हैं और उन सीटों पर सूची में ऊपर से उम्मीदवारों को चुना जाता है। (उदाहरण: इज़राइल, नीदरलैंड)
    • एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote - STV): इसमें मतदाता उम्मीदवारों को अपनी पसंद के क्रम में वरीयता (1, 2, 3...) देते हैं। जीतने के लिए एक निश्चित कोटा (कुल वैध मतों का एक निश्चित प्रतिशत) प्राप्त करना होता है। यदि कोई उम्मीदवार पहली वरीयता के मतों से कोटा प्राप्त नहीं कर पाता, तो सबसे कम मत वाले उम्मीदवार के मतों को दूसरी वरीयता के अनुसार अन्य उम्मीदवारों में स्थानांतरित किया जाता है, जब तक कि कोई उम्मीदवार कोटा पूरा न कर ले। (उदाहरण: भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यसभा और विधान परिषदों के चुनाव)
  • लाभ:
    • अधिक सटीक प्रतिनिधित्व: यह प्रणाली दलों को उनके मत प्रतिशत के अनुपात में सीटें देती है, जिससे प्रतिनिधित्व अधिक सटीक होता है।
    • छोटे दलों को अवसर: छोटे दलों को भी संसद में प्रतिनिधित्व का अवसर मिलता है।
    • विविध समूहों का प्रतिनिधित्व: यह समाज के विभिन्न समूहों को प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने में मदद करती है।
  • हानियाँ:
    • जटिल प्रणाली: यह प्रणाली मतदाताओं के लिए समझने में जटिल होती है।
    • अस्थिर सरकारें: अक्सर गठबंधन सरकारें बनती हैं, जिससे राजनीतिक अस्थिरता आ सकती है।
    • प्रतिनिधियों और मतदाताओं के बीच सीधा संबंध कम: मतदाता सीधे अपने प्रतिनिधि को नहीं चुनते, बल्कि दल को चुनते हैं।
    • उप-चुनावों की संभावना कम: चूंकि सीटें दलों को आवंटित होती हैं, इसलिए किसी प्रतिनिधि के हटने पर उप-चुनाव की आवश्यकता कम होती है।

C. भारत में सर्वाधिक मत से जीत की प्रणाली क्यों अपनाई गई?
भारत ने FPTP प्रणाली को निम्नलिखित कारणों से अपनाया:

  1. सरलता: यह प्रणाली अशिक्षित मतदाताओं के लिए भी समझने और लागू करने में आसान है।
  2. स्थिरता: यह अक्सर स्पष्ट बहुमत वाली सरकारें बनाती है, जो भारत जैसे बड़े और विविधतापूर्ण देश के लिए राजनीतिक स्थिरता प्रदान करती है।
  3. मतदाताओं और प्रतिनिधियों के बीच सीधा संबंध: यह प्रणाली प्रतिनिधि को अपने निर्वाचन क्षेत्र के प्रति जवाबदेह बनाती है।
  4. क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व: यह सुनिश्चित करती है कि देश के प्रत्येक क्षेत्र से एक प्रतिनिधि हो।
  5. राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा: यह छोटे-छोटे समूहों को अलग-अलग प्रतिनिधित्व देने के बजाय, बड़े दलों को बढ़ावा देती है जो विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों को एक साथ लाते हैं।
  6. आनुपातिक प्रतिनिधित्व की जटिलता: आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली भारत जैसे विशाल देश के लिए बहुत जटिल और अव्यावहारिक मानी गई।

III. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
लोकतंत्र की आत्मा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में निहित है। भारत के संविधान ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान किए हैं:

A. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal Adult Franchise)

  • अर्थ: बिना किसी भेदभाव (जाति, धर्म, लिंग, शिक्षा, संपत्ति) के एक निश्चित आयु प्राप्त सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार।
  • भारत में: संविधान लागू होने के साथ ही इसे अपनाया गया।
  • आयु सीमा: मूल रूप से 21 वर्ष थी, जिसे 61वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1989 द्वारा घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया।

B. स्वतंत्र निर्वाचन आयोग (Independent Election Commission)

  • संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 324 भारत में चुनाव आयोग की स्थापना और उसके कार्यों से संबंधित है। यह लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है।
  • गठन: इसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner - CEC) और उतने अन्य चुनाव आयुक्त (Election Commissioners - ECs) होते हैं, जितने राष्ट्रपति समय-समय पर निर्धारित करें। वर्तमान में, इसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं।
  • नियुक्ति: राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • कार्यकाल: 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो।
  • हटाने की प्रक्रिया: मुख्य चुनाव आयुक्त को उसी प्रक्रिया से हटाया जा सकता है, जिससे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है (संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से)। अन्य चुनाव आयुक्तों को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर राष्ट्रपति हटा सकते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि वे स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें।
  • कार्य और शक्तियाँ:
    1. निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन: जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण।
    2. मतदाता सूची तैयार करना: समय-समय पर मतदाता सूचियों को अद्यतन करना।
    3. चुनाव की तिथि और कार्यक्रम घोषित करना: चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करना।
    4. नामांकन पत्रों की जाँच: उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों की जाँच करना।
    5. चुनाव चिह्न आवंटित करना: राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को चुनाव चिह्न आवंटित करना।
    6. आचार संहिता लागू करना: चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए 'आदर्श आचार संहिता' लागू करना और उसका उल्लंघन करने वालों को दंडित करना।
    7. चुनाव पर्यवेक्षकों की नियुक्ति: चुनावों की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए पर्यवेक्षकों की नियुक्ति।
    8. चुनाव परिणाम घोषित करना: मतगणना और परिणाम घोषित करना।
    9. चुनाव विवादों का निपटारा: चुनाव संबंधी विवादों को सुलझाना (हालांकि अंतिम न्यायिक निर्णय अदालतों द्वारा ही होता है)।
    10. राजनीतिक दलों को मान्यता देना: राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को मान्यता देना।

C. आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र (Reserved Constituencies)

  • आवश्यकता: भारत में 'सर्वाधिक मत से जीत की प्रणाली' के कारण समाज के कुछ कमजोर वर्गों (जैसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) के लिए संसद और विधानसभाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना मुश्किल हो सकता है। इसलिए, संविधान निर्माताओं ने उनके लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान किया।
  • उद्देश्य: यह सुनिश्चित करना कि समाज का कोई भी वर्ग संसद में प्रतिनिधित्व से वंचित न रहे और उनकी आवाज सुनी जा सके।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 330: लोकसभा में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए सीटों का आरक्षण।
    • अनुच्छेद 332: राज्य विधानसभाओं में SC और ST के लिए सीटों का आरक्षण।
  • परिसीमन आयोग: परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) समय-समय पर निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण करता है और आरक्षित सीटों की पहचान करता है। ये सीटें पूरे देश में घूमती रहती हैं, ताकि किसी एक क्षेत्र पर हमेशा के लिए आरक्षण का ठप्पा न लगे।
  • स्थानीय निकायों में आरक्षण: पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित हैं, साथ ही SC और ST के लिए भी आरक्षण का प्रावधान है।

IV. चुनाव सुधार (Electoral Reforms)
भारतीय चुनाव प्रणाली ने कई चुनौतियों का सामना किया है, और समय-समय पर इसमें सुधारों की आवश्यकता महसूस की गई है। कुछ प्रमुख सुधार और सुझाव:

  1. आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को रोकना: गंभीर आपराधिक मामलों वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कानून को मजबूत करना।
  2. धन बल का प्रयोग रोकना: चुनाव में धन के दुरुपयोग को नियंत्रित करना, चुनाव खर्च की सीमा को प्रभावी ढंग से लागू करना।
  3. जाति और धर्म के आधार पर प्रचार पर रोक: सांप्रदायिक और जातिवादी भावनाओं को भड़काने वाले प्रचार पर सख्त प्रतिबंध लगाना।
  4. महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना: संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण पर विचार करना (जैसे स्थानीय निकायों में है)।
  5. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली पर विचार: कुछ विशेषज्ञों का सुझाव है कि लोकसभा चुनावों में भी आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के कुछ तत्वों को शामिल किया जा सकता है, या कम से कम राज्यसभा की तरह इसे अपनाया जा सकता है।
  6. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT): EVM ने मतदान प्रक्रिया को तेज, आसान और धोखाधड़ी मुक्त बनाया है। VVPAT के आने से पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ी है।
  7. चुनाव आयोग को और शक्तियाँ: चुनाव आयोग को आदर्श आचार संहिता को लागू करने और उल्लंघनकर्ताओं पर कार्रवाई करने के लिए और अधिक शक्तियाँ देना।
  8. दल-बदल विरोधी कानून को मजबूत करना: दल-बदल को रोकने के लिए कानून को और प्रभावी बनाना।

V. निष्कर्ष
भारतीय चुनाव प्रणाली ने देश के लोकतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसने राजनीतिक स्थिरता प्रदान की है, विभिन्न सामाजिक समूहों को प्रतिनिधित्व दिया है, और सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण को सुनिश्चित किया है। हालांकि, धन बल, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों, और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जैसी चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं, जिनके लिए निरंतर सुधारों और नागरिक भागीदारी की आवश्यकता है।


बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)

  1. भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव के लिए कौन सी चुनाव प्रणाली अपनाई जाती है?
    a) आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली
    b) एकल संक्रमणीय मत प्रणाली
    c) सर्वाधिक मत से जीत की प्रणाली (First Past the Post System)
    d) सूची प्रणाली

  2. भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद चुनाव आयोग की स्थापना से संबंधित है?
    a) अनुच्छेद 320
    b) अनुच्छेद 324
    c) अनुच्छेद 326
    d) अनुच्छेद 328

  3. भारत में मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल कितने वर्ष का होता है?
    a) 5 वर्ष या 60 वर्ष की आयु
    b) 6 वर्ष या 62 वर्ष की आयु
    c) 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु
    d) 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु

  4. किस संविधान संशोधन द्वारा मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई?
    a) 42वाँ संविधान संशोधन
    b) 44वाँ संविधान संशोधन
    c) 61वाँ संविधान संशोधन
    d) 73वाँ संविधान संशोधन

  5. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का एक उदाहरण जहाँ मतदाता उम्मीदवारों को वरीयता क्रम में चुनते हैं, वह है:
    a) सर्वाधिक मत से जीत की प्रणाली
    b) सूची प्रणाली
    c) एकल संक्रमणीय मत प्रणाली
    d) बहुलवादी प्रणाली

  6. भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए लोकसभा में सीटों का आरक्षण किस अनुच्छेद के तहत किया गया है?
    a) अनुच्छेद 330
    b) अनुच्छेद 331
    c) अनुच्छेद 333
    d) अनुच्छेद 335

  7. चुनाव आयोग का निम्नलिखित में से कौन सा कार्य नहीं है?
    a) मतदाता सूची तैयार करना
    b) चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन करना
    c) प्रधानमंत्री का चुनाव करना
    d) राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न आवंटित करना

  8. सर्वाधिक मत से जीत की प्रणाली का एक प्रमुख लाभ क्या है?
    a) यह छोटे दलों को अधिक प्रतिनिधित्व देती है।
    b) यह जटिल और समझने में मुश्किल है।
    c) यह अक्सर स्थिर सरकारें बनाती है।
    d) यह हमेशा बहुमत वाली सरकारें बनाती है।

  9. भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव किस प्रणाली से होता है?
    a) सर्वाधिक मत से जीत की प्रणाली
    b) एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व
    c) सूची प्रणाली द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व
    d) प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली

  10. EVM के साथ VVPAT का उपयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाता है?
    a) चुनाव खर्च को कम करने के लिए
    b) मतदान की गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए
    c) मतदाता द्वारा डाले गए मत का सत्यापन करने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए
    d) चुनाव आयोग के कर्मचारियों की संख्या कम करने के लिए


उत्तरमाला (MCQs):

  1. c
  2. b
  3. c
  4. c
  5. c
  6. a
  7. c
  8. c
  9. b
  10. c

मुझे आशा है कि यह विस्तृत नोट्स और बहुविकल्पीय प्रश्न आपकी सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में सहायक सिद्ध होंगे। अपनी पढ़ाई जारी रखें और किसी भी संदेह के लिए पूछने में संकोच न करें।

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