Class 11 Political Science Notes Chapter 8 (स्थानीय शासन) – Bharat ka Samvidhant Sidhant aur Vyavhar Book

प्रिय विद्यार्थियों, आज हम आपकी राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक 'भारत का संविधान: सिद्धांत और व्यवहार' के अध्याय 8 'स्थानीय शासन' का विस्तृत अध्ययन करेंगे। यह अध्याय न केवल आपकी अकादमिक समझ के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के दृष्टिकोण से भी अत्यंत प्रासंगिक है। इस अध्याय में हम स्थानीय शासन के महत्व, उसके विकास, और 73वें तथा 74वें संविधान संशोधनों के महत्वपूर्ण प्रावधानों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
अध्याय 8: स्थानीय शासन (Local Governments)
I. परिचय एवं महत्व
स्थानीय शासन का अर्थ है गाँव और जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते हैं। लोकतंत्र की वास्तविक जड़ें स्थानीय स्तर पर ही मजबूत होती हैं। महात्मा गांधी ने 'ग्राम स्वराज' की कल्पना की थी, जिसमें स्थानीय स्तर पर लोगों को स्वयं अपने निर्णय लेने की शक्ति हो।
- स्थानीय शासन का महत्व:
- लोकतंत्र को मजबूत करना: यह लोगों को स्थानीय समस्याओं के समाधान में सीधे भाग लेने का अवसर देता है, जिससे लोकतंत्र की भागीदारी बढ़ती है।
- स्थानीय समस्याओं का बेहतर समाधान: स्थानीय लोग अपनी समस्याओं और आवश्यकताओं को बेहतर समझते हैं, जिससे प्रभावी समाधान संभव होता है।
- शासन में जनभागीदारी: यह आम नागरिकों को शासन प्रक्रिया में शामिल करता है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ती है।
- केंद्र/राज्य सरकारों पर बोझ कम करना: यह प्रशासन के विकेंद्रीकरण द्वारा बड़े प्रशासनिक तंत्र का बोझ कम करता है।
- प्रशिक्षण का मंच: यह स्थानीय नेताओं के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर की राजनीति में प्रवेश करने से पहले प्रशिक्षण का मंच प्रदान करता है।
II. भारत में स्थानीय शासन का विकास
-
प्राचीन काल:
- भारत में स्थानीय शासन की परंपरा बहुत पुरानी है। प्राचीन काल में गाँव स्वयं में एक गणराज्य होते थे, जिनकी अपनी पंचायतें होती थीं।
- चोल साम्राज्य (दक्षिण भारत) में स्थानीय स्वशासन अपने चरमोत्कर्ष पर था, जहाँ ग्राम सभाएँ और समितियाँ प्रभावी ढंग से कार्य करती थीं।
-
ब्रिटिश काल:
- ब्रिटिश शासन के दौरान स्थानीय निकायों की स्थापना की गई, लेकिन उनका उद्देश्य ब्रिटिश हितों की पूर्ति करना था।
- 1882 में लॉर्ड रिपन ने स्थानीय स्वशासन के लिए एक प्रस्ताव पेश किया, जिसे 'स्थानीय स्वशासन का मैग्ना कार्टा' कहा जाता है। लॉर्ड रिपन को भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक माना जाता है।
- इन निकायों को सीमित शक्तियाँ दी गईं और निर्वाचित सदस्यों की संख्या भी कम थी।
-
स्वतंत्रता के बाद:
- संविधान में प्रावधान: स्वतंत्रता के बाद, संविधान के अनुच्छेद 40 में ग्राम पंचायतों के गठन को राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में शामिल किया गया, जिसका अर्थ था कि राज्य अपनी इच्छा से इन्हें स्थापित कर सकते हैं।
- सामुदायिक विकास कार्यक्रम (1952): गाँवों के विकास के लिए शुरू किया गया, लेकिन जनभागीदारी के अभाव में सफल नहीं हो पाया।
- बलवंत राय मेहता समिति (1957): इस समिति ने लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की सिफारिश की और त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का सुझाव दिया:
- ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत
- खंड/प्रखंड स्तर पर पंचायत समिति
- जिला स्तर पर जिला परिषद
- इस समिति की सिफारिशों के आधार पर 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पहली बार पंचायती राज व्यवस्था का उद्घाटन किया गया।
- अशोक मेहता समिति (1977): इस समिति ने पंचायती राज व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए द्वि-स्तरीय प्रणाली का सुझाव दिया।
- पी.के. थुंगन समिति (1989): इस समिति ने स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिश की, ताकि वे अधिक प्रभावी और स्वायत्त बन सकें।
- राजीव गांधी सरकार: 1989 में 64वाँ और 65वाँ संविधान संशोधन विधेयक पेश किए गए, लेकिन वे राज्यसभा में पारित नहीं हो सके।
III. 73वाँ और 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992
स्थानीय निकायों की कमजोरियों (अनियमित चुनाव, वित्तीय अभाव, शक्तियों का अभाव) को दूर करने के लिए पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार ने दो महत्वपूर्ण संविधान संशोधन पारित किए:
-
73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 (पंचायती राज)
- यह अधिनियम 24 अप्रैल 1993 को लागू हुआ।
- इसने संविधान में भाग IX जोड़ा, जिसका शीर्षक "पंचायतें" है।
- इसने संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ी, जिसमें पंचायतों के 29 कार्यात्मक विषय शामिल हैं।
-
74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 (शहरी स्थानीय निकाय)
- यह अधिनियम 1 जून 1993 को लागू हुआ।
- इसने संविधान में भाग IXA जोड़ा, जिसका शीर्षक "नगरपालिकाएँ" है।
- इसने संविधान में 12वीं अनुसूची जोड़ी, जिसमें शहरी स्थानीय निकायों के 18 कार्यात्मक विषय शामिल हैं।
IV. 73वें संविधान संशोधन की मुख्य विशेषताएँ (पंचायती राज)
यह अधिनियम पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देता है और उन्हें अधिक शक्तिशाली व जवाबदेह बनाता है।
-
त्रि-स्तरीय ढाँचा: सभी राज्यों में त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था अनिवार्य की गई है (जिन राज्यों की जनसंख्या 20 लाख से कम है, वे मध्यवर्ती स्तर को छोड़ सकते हैं)।
- ग्राम स्तर: ग्राम पंचायत (गाँव या गाँवों का समूह)
- मध्यवर्ती स्तर: मंडल/प्रखंड/तालुका पंचायत (ब्लॉक स्तर)
- जिला स्तर: जिला पंचायत/परिषद (जिला स्तर)
-
ग्राम सभा:
- यह पंचायती राज व्यवस्था की आधारशिला है।
- गाँव के सभी वयस्क मतदाता (जिनका नाम मतदाता सूची में हो) ग्राम सभा के सदस्य होते हैं।
- ग्राम सभा को ऐसी शक्तियाँ और कार्य दिए जा सकते हैं, जो राज्य विधानमंडल द्वारा निर्धारित किए जाएँ।
-
चुनाव:
- प्रत्यक्ष चुनाव: ग्राम पंचायत, मध्यवर्ती और जिला पंचायत के सभी सदस्यों का चुनाव सीधे मतदाताओं द्वारा किया जाता है।
- अध्यक्षों का चुनाव: ग्राम पंचायत के अध्यक्ष (प्रधान/सरपंच) का चुनाव सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से हो सकता है, जैसा कि राज्य विधानमंडल तय करे। मध्यवर्ती और जिला पंचायत के अध्यक्षों का चुनाव उनके निर्वाचित सदस्यों में से अप्रत्यक्ष रूप से होता है।
- राज्य चुनाव आयोग: प्रत्येक राज्य में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने के लिए एक स्वतंत्र राज्य चुनाव आयोग का गठन किया जाता है। यह मतदाता सूची तैयार करने और चुनाव कराने का कार्य करता है।
-
कार्यकाल:
- पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया है।
- यदि किसी पंचायत को उसके कार्यकाल से पहले भंग कर दिया जाता है, तो 6 माह के भीतर नए चुनाव कराना अनिवार्य है। नई पंचायत शेष अवधि के लिए कार्य करती है।
-
आरक्षण:
- अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST): इन वर्गों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें आरक्षित की गई हैं।
- महिलाएँ: कुल सीटों का एक-तिहाई (1/3) पद महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए हैं। इसमें SC/ST महिलाओं के लिए भी आरक्षण शामिल है।
- अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC): राज्य विधानमंडल को यह अधिकार दिया गया है कि वह OBC के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सकता है।
-
राज्य वित्त आयोग:
- प्रत्येक राज्य में हर 5 वर्ष में एक राज्य वित्त आयोग का गठन किया जाता है।
- यह आयोग राज्य सरकार और स्थानीय निकायों के बीच राजस्व के बँटवारे की समीक्षा करता है और पंचायतों की वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाने के लिए सिफारिशें करता है।
-
अनिवार्य और स्वैच्छिक प्रावधान:
- अनिवार्य प्रावधान: त्रि-स्तरीय ढाँचा, प्रत्यक्ष चुनाव, 5 वर्ष का कार्यकाल, आरक्षण, राज्य चुनाव आयोग, राज्य वित्त आयोग।
- स्वैच्छिक प्रावधान: सांसदों/विधायकों को स्थानीय निकायों में प्रतिनिधित्व देना, OBC आरक्षण, पंचायतों को और अधिक शक्तियाँ देना।
V. 74वें संविधान संशोधन की मुख्य विशेषताएँ (शहरी स्थानीय निकाय)
यह अधिनियम शहरी क्षेत्रों के स्थानीय निकायों (नगरपालिकाओं) को संवैधानिक दर्जा देता है।
-
शहरी स्थानीय निकायों के प्रकार:
- नगर पंचायत: ऐसे क्षेत्र जो ग्रामीण से शहरी क्षेत्र में परिवर्तित हो रहे हैं।
- नगर पालिका परिषद: छोटे शहरी क्षेत्रों के लिए।
- नगर निगम: बड़े शहरी क्षेत्रों के लिए।
-
चुनाव:
- नगरपालिकाओं के सभी सदस्यों का चुनाव सीधे मतदाताओं द्वारा किया जाता है।
- अध्यक्षों का चुनाव राज्य विधानमंडल के कानून के अनुसार होता है।
- कार्यकाल 5 वर्ष, भंग होने पर 6 माह में चुनाव।
- राज्य चुनाव आयोग शहरी निकायों के भी चुनाव कराता है।
-
आरक्षण:
- SC/ST के लिए जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण।
- महिलाओं के लिए एक-तिहाई (1/3) सीटें आरक्षित।
- राज्य विधानमंडल OBC के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सकता है।
-
राज्य वित्त आयोग:
- यह आयोग शहरी निकायों की वित्तीय स्थिति की भी समीक्षा करता है और उनके लिए अनुदान की सिफारिश करता है।
-
जिला योजना समिति (District Planning Committee - DPC):
- प्रत्येक जिले में एक जिला योजना समिति का गठन अनिवार्य है।
- इसका कार्य जिले के लिए विकास योजना का मसौदा तैयार करना है, जिसमें ग्रामीण (पंचायतों) और शहरी (नगरपालिकाओं) दोनों क्षेत्रों की योजनाएँ शामिल हों।
-
महानगर योजना समिति (Metropolitan Planning Committee - MPC):
- प्रत्येक महानगर क्षेत्र (10 लाख से अधिक जनसंख्या) के लिए एक महानगर योजना समिति का गठन अनिवार्य है।
- इसका कार्य पूरे महानगर क्षेत्र के लिए विकास योजना का मसौदा तैयार करना है।
VI. स्थानीय शासन के समक्ष चुनौतियाँ
संविधान संशोधन के बावजूद, स्थानीय शासन के सामने कुछ चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं:
- वित्तीय स्वायत्तता का अभाव: स्थानीय निकाय अभी भी राज्य सरकारों पर वित्तीय रूप से निर्भर हैं, जिससे उनकी कार्यप्रणाली प्रभावित होती है।
- शक्तियों का अपर्याप्त हस्तांतरण: कई राज्यों ने अभी तक स्थानीय निकायों को 11वीं और 12वीं अनुसूची में उल्लिखित सभी 29 और 18 विषयों पर पूरी शक्तियाँ हस्तांतरित नहीं की हैं।
- अति-राजनीतिकरण: स्थानीय चुनावों में भी दलीय राजनीति का प्रभाव बढ़ रहा है, जिससे निष्पक्ष कार्यप्रणाली बाधित होती है।
- अधिकारियों का हस्तक्षेप: नौकरशाही का हस्तक्षेप अभी भी एक बड़ी चुनौती है, जिससे स्थानीय प्रतिनिधियों की भूमिका सीमित हो जाती है।
- ग्राम सभा की निष्क्रियता: कई जगह ग्राम सभाएँ प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर पातीं, जिससे जनभागीदारी का उद्देश्य पूरा नहीं होता।
- आरक्षण का प्रभावी क्रियान्वयन: महिलाओं और SC/ST के लिए आरक्षण के बावजूद, सामाजिक बाधाएँ और 'पति राज' जैसी समस्याएँ अभी भी मौजूद हैं।
VII. निष्कर्ष
73वें और 74वें संविधान संशोधनों ने भारत में स्थानीय शासन को एक नई दिशा दी है। इसने लोकतंत्र को जमीनी स्तर पर मजबूत किया है और लोगों की भागीदारी को बढ़ाया है। हालाँकि, इन निकायों को वास्तविक स्वायत्तता और शक्ति प्रदान करने के लिए अभी भी वित्तीय सशक्तिकरण, शक्तियों के पूर्ण हस्तांतरण और जनभागीदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
-
भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक किसे माना जाता है?
अ) लॉर्ड डलहौजी
ब) लॉर्ड रिपन
स) लॉर्ड कर्जन
द) लॉर्ड माउंटबेटन -
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में ग्राम पंचायतों के गठन का उल्लेख है?
अ) अनुच्छेद 32
ब) अनुच्छेद 40
स) अनुच्छेद 51
द) अनुच्छेद 21 -
बलवंत राय मेहता समिति का संबंध किससे है?
अ) केंद्र-राज्य संबंध
ब) चुनाव सुधार
स) पंचायती राज व्यवस्था
द) मौलिक अधिकार -
73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम कब लागू हुआ?
अ) 26 जनवरी 1993
ब) 1 जून 1993
स) 24 अप्रैल 1993
द) 15 अगस्त 1992 -
73वें संविधान संशोधन के अंतर्गत महिलाओं के लिए पंचायती राज संस्थाओं में कितने पद आरक्षित किए गए हैं?
अ) एक-चौथाई (1/4)
ब) एक-तिहाई (1/3)
स) आधे (1/2)
द) दो-तिहाई (2/3) -
पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने की जिम्मेदारी किसकी होती है?
अ) भारत का चुनाव आयोग
ब) राज्य चुनाव आयोग
स) संबंधित राज्य सरकार
द) जिला कलेक्टर -
73वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में कौन सी अनुसूची जोड़ी गई?
अ) 9वीं अनुसूची
ब) 10वीं अनुसूची
स) 11वीं अनुसूची
द) 12वीं अनुसूची -
शहरी स्थानीय निकायों के लिए 74वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में कौन सा भाग जोड़ा गया?
अ) भाग IX
ब) भाग IXA
स) भाग X
द) भाग XI -
प्रत्येक राज्य में पंचायती राज संस्थाओं की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए हर 5 वर्ष में किसका गठन किया जाता है?
अ) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
ब) राज्य वित्त आयोग
स) नीति आयोग
द) केंद्रीय वित्त आयोग -
जिले के लिए विकास योजना का मसौदा तैयार करने का कार्य किस समिति का है, जिसमें ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों की योजनाएँ शामिल हों?
अ) राज्य योजना समिति
ब) जिला योजना समिति
स) महानगर योजना समिति
द) ग्राम विकास समिति
उत्तर कुंजी:
- ब) लॉर्ड रिपन
- ब) अनुच्छेद 40
- स) पंचायती राज व्यवस्था
- स) 24 अप्रैल 1993
- ब) एक-तिहाई (1/3)
- ब) राज्य चुनाव आयोग
- स) 11वीं अनुसूची
- ब) भाग IXA
- ब) राज्य वित्त आयोग
- ब) जिला योजना समिति