Class 11 Sanskrit Notes Chapter 11 (ईशः कुत्रास्ति) – Shashwati Book

नमस्ते विद्यार्थियो,
आज हम कक्षा 11 की संस्कृत पाठ्यपुस्तक 'शाश्वती' के एकादश पाठ 'ईशः कुत्रास्ति' (ईश्वर कहाँ है?) का अध्ययन करेंगे। यह पाठ कठोपनिषद् से लिया गया है और अत्यंत महत्वपूर्ण दार्शनिक विचारों को प्रस्तुत करता है। परीक्षा की दृष्टि से इसके मुख्य बिंदुओं को समझना आवश्यक है।
पाठ परिचय:
यह पाठ यम और नचिकेता के प्रसिद्ध संवाद का अंश है, जो कठोपनिषद् में वर्णित है। नचिकेता, एक जिज्ञासु बालक, यमराज से आत्म-तत्व और मृत्यु के रहस्य के बारे में प्रश्न पूछता है। यमराज उसे विभिन्न प्रलोभन देते हैं, परन्तु नचिकेता आत्मज्ञान प्राप्त करने पर अडिग रहता है। इस पाठ में यमराज नचिकेता को आत्मा के स्वरूप और उसे जानने के मार्ग के बारे में बताते हैं।
पाठ का विस्तृत विश्लेषण एवं प्रमुख बिंदु (परीक्षा उपयोगी):
- स्रोत: यह पाठ कठोपनिषद् से संकलित है। (यह तथ्य सीधे प्रश्न के रूप में पूछा जा सकता है।)
- संवाद: यह यम और नचिकेता के बीच का संवाद है। यम यहाँ गुरु (वक्ता) हैं और नचिकेता शिष्य (श्रोता/जिज्ञासु) है।
- श्रेयस् और प्रेयस् मार्ग: यमराज बताते हैं कि मनुष्य के सामने दो मार्ग होते हैं - श्रेयस् (कल्याणकारी, आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग) और प्रेयस् (प्रिय लगने वाला, सांसारिक भोगों का मार्ग)। बुद्धिमान व्यक्ति श्रेयस् मार्ग को चुनता है, जबकि मंदबुद्धि व्यक्ति प्रेयस् मार्ग को चुनता है। नचिकेता ने श्रेयस् मार्ग को चुना।
- श्रेयः = कल्याण, मोक्ष, आत्मज्ञान
- प्रेयः = प्रिय लगने वाला, सांसारिक सुख, भोग
- आत्मा का स्वरूप: यमराज आत्मा के वास्तविक स्वरूप का वर्णन करते हैं:
- अणोरणीयान् महतो महीयान्: आत्मा अणु से भी सूक्ष्म (छोटी) और महान् से भी महान् (बड़ी) है। (यह पंक्ति अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसका अर्थ पूछा जा सकता है।)
- आत्मा गुहायां निहितः: यह आत्मा प्रत्येक प्राणी के हृदय रूपी गुफा (गुहा) में स्थित है।
- अक्रतुः: कामनाओं या संकल्पों से रहित व्यक्ति ही आत्मा के दर्शन कर पाता है।
- वीतशोकः: आत्मा को जानकर मनुष्य शोक रहित हो जाता है।
- अशरीरं शरीरेषु: आत्मा शरीर में रहते हुए भी अशरीरी है।
- अनवस्थितेषु अवस्थितम्: वह अनित्य वस्तुओं में नित्य रूप से स्थित है।
- महान्तं विभुम् आत्मानम्: आत्मा महान् और सर्वव्यापक है। इसे जानकर धीर पुरुष शोक नहीं करते।
- न जायते म्रियते वा विपश्चित्: यह ज्ञानस्वरूप आत्मा न जन्म लेता है और न मरता है। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नष्ट होने पर भी यह नष्ट नहीं होता।
- आत्मा की प्राप्ति का उपाय: आत्मा को कैसे जाना जा सकता है?
- नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन: यह आत्मा न तो प्रवचन (भाषण) से, न बुद्धि (तर्क-वितर्क) से और न ही बहुत सुनने (शास्त्र ज्ञान) से प्राप्त होती है।
- यमेवैष वृणुते तेन लभ्यः: यह आत्मा जिसका स्वयं वरण करती है (जिस पर कृपा करती है), उसी के द्वारा प्राप्त की जा सकती है। वह साधक अपनी निष्ठा और ईश्वर की कृपा से ही आत्म-साक्षात्कार करता है।
- रथ रूपक (अलंकार): आत्मा, शरीर, बुद्धि, मन और इन्द्रियों के सम्बन्ध को समझाने के लिए रथ का रूपक दिया गया है:
- आत्मानं रथिनं विद्धि: आत्मा को रथ का स्वामी (रथी) समझो।
- शरीरं रथमेव तु: शरीर को रथ समझो।
- बुद्धिं तु सारथिं विद्धि: बुद्धि को सारथी (रथ चलाने वाला) समझो।
- मनः प्रग्रहमेव च: मन को लगाम समझो।
- इन्द्रियाणि हयानाहुः: इन्द्रियों को घोड़े कहा गया है।
- विषयान् तेषु गोचरान्: इन्द्रियों के विषय (रूप, रस, गंध आदि) उन घोड़ों के चलने के मार्ग हैं।
- संदेश: जिसका मन संयमित है और बुद्धि विवेकशील है, वही इन्द्रिय रूपी घोड़ों को वश में करके परम पद (मोक्ष) को प्राप्त करता है। असंयमित मन वाला संसार चक्र में भटकता रहता है।
- तत्वों का पदानुक्रम (सूक्ष्मता का क्रम): इन्द्रियों से श्रेष्ठ उनके विषय हैं, विषयों से श्रेष्ठ मन है, मन से श्रेष्ठ बुद्धि है, बुद्धि से श्रेष्ठ महत्तत्त्व (महान आत्मा) है, महत्तत्त्व से श्रेष्ठ अव्यक्त (प्रकृति/माया) है, और अव्यक्त से भी श्रेष्ठ पुरुषः (परमात्मा/परम सत्य) है। पुरुष से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है, वही अंतिम सीमा और परम गति है।
- क्रम: इन्द्रिय < विषय < मन < बुद्धि < महत् तत्त्व < अव्यक्त < पुरुष
- जागृति का आह्वान:
- उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत: उठो, जागो और श्रेष्ठ ज्ञानी पुरुषों (वरान्) के पास जाकर उस परम तत्त्व को जानो।
- क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत् कवयो वदन्ति: ज्ञानीजन कहते हैं कि वह मार्ग छुरे की तीक्ष्ण धार के समान दुर्गम (पार करने में कठिन) है। (आत्मज्ञान का मार्ग कठिन है, सावधानी और निष्ठा की आवश्यकता है।)
महत्वपूर्ण शब्दावली:
- श्रेयः: कल्याणकारी मार्ग
- प्रेयः: प्रिय लगने वाला मार्ग
- अणोः अणीयान्: अणु से भी सूक्ष्म
- महतो महीयान्: महान् से भी महान्
- गुहायाम्: हृदय रूपी गुफा में
- निहितः: स्थित, छिपा हुआ
- अक्रतुः: कामना रहित
- वीतशोकः: शोक रहित
- विपश्चित्: ज्ञानी, ज्ञानस्वरूप आत्मा
- प्रवचनेन: उपदेश/भाषण से
- मेधया: बुद्धि से
- श्रुतेन: सुनने से (शास्त्र ज्ञान से)
- वृणुते: वरण करती है, चुनती है
- रथिनम्: रथ का स्वामी
- सारथिम्: रथ चलाने वाला
- प्रग्रहम्: लगाम
- हयान्: घोड़ों को
- अव्यक्तम्: अप्रकट प्रकृति/माया
- पुरुषः: परम आत्मा, परमात्मा
- निशिता: तीक्ष्ण, पैनी
- दुरत्यया: कठिनता से पार करने योग्य
परीक्षा की दृष्टि से महत्व:
यह पाठ वेदांत दर्शन के गूढ़ तत्वों को सरल भाषा में प्रस्तुत करता है। इससे आत्मा के स्वरूप, उसकी प्राप्ति के साधन, श्रेयस्-प्रेयस् मार्ग, रथ रूपक और तत्वों के क्रम से संबंधित प्रश्न पूछे जा सकते हैं। श्लोकों की पंक्तियाँ देकर उनका अर्थ या उनमें निहित संदेश पूछा जा सकता है। शब्दावली पर आधारित प्रश्न भी महत्वपूर्ण हैं।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
-
'ईशः कुत्रास्ति' इति पाठः कस्मात् ग्रन्थात् सङ्कलितः?
(क) श्रीमद्भगवद्गीतायाः
(ख) कठोपनिषदः
(ग) ईशोपनिषदः
(घ) मुण्डकोपनिषदः
उत्तरम्: (ख) कठोपनिषदः -
अस्मिन् पाठे कयोः मध्ये संवादः वर्तते?
(क) यम-युधिष्ठिरयोः
(ख) कृष्ण-अर्जुनयोः
(ग) यम-नचिकेतसोः
(घ) जनक-याज्ञवल्क्ययोः
उत्तरम्: (ग) यम-नचिकेतसोः -
'अणोरणीयान् महतो महीयान्' कः अस्ति?
(क) मनः
(ख) बुद्धिः
(ग) आत्मा
(घ) शरीरम्
उत्तरम्: (ग) आत्मा -
आत्मा कुत्र निहितः अस्ति?
(क) आकाशे
(ख) शरीरे
(ग) जलेन
(घ) गुहायाम् (हृदयगुहायाम्)
उत्तरम्: (घ) गुहायाम् (हृदयगुहायाम्) -
पाठानुसारं रथस्य सारथिः कः अस्ति?
(क) मनः
(ख) आत्मा
(ग) इन्द्रियाणि
(घ) बुद्धिः
उत्तरम्: (घ) बुद्धिः -
नचिकेता कं मार्गं वरितवान्?
(क) प्रेयः मार्गम्
(ख) श्रेयः मार्गम्
(ग) उभौ मार्गौ
(घ) कोऽपि न
उत्तरम्: (ख) श्रेयः मार्गम् -
आत्मा केन न लभ्यः?
(क) प्रवचनेन
(ख) मेधया
(ग) बहुना श्रुतेन
(घ) एतैः सर्वैः
उत्तरम्: (घ) एतैः सर्वैः -
'उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत' – अत्र 'वरान्' पदस्य कः अर्थः?
(क) वरदान्
(ख) श्रेष्ठान् पुरुषान् (ज्ञानिनः)
(ग) वरान् (पति)
(घ) देवान्
उत्तरम्: (ख) श्रेष्ठान् पुरुषान् (ज्ञानिनः) -
अव्यक्तात् परः कः अस्ति?
(क) बुद्धिः
(ख) मनः
(ग) पुरुषः
(घ) महत् तत्त्वम्
उत्तरम्: (ग) पुरुषः -
आत्मज्ञानस्य मार्गः कीदृशः वर्णितः?
(क) सरलः
(ख) विस्तृतः
(ग) क्षुरस्य धारा इव निशिता, दुर्गमः
(घ) सुखकरः
उत्तरम्: (ग) क्षुरस्य धारा इव निशिता, दुर्गमः
इन नोट्स और प्रश्नों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें। यह आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होगा। कोई शंका हो तो अवश्य पूछें। शुभकामनाएँ!