Class 11 Sanskrit Notes Chapter 6 (आहारविचारः) – Shashwati Book

हाँ, बिलकुल! चलिए, आज हम कक्षा 11 की संस्कृत पुस्तक 'शाश्वती' के छठे पाठ 'आहारविचारः' का गहन अध्ययन करते हैं। यह पाठ सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें स्वास्थ्य और आयुर्वेद से जुड़े मौलिक सिद्धांतों की चर्चा की गई है।
पाठ 6: आहारविचारः (विस्तृत नोट्स)
पाठ परिचय:
यह पाठ आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ 'चरकसंहिता' के सूत्रस्थान के अन्नपानविधि नामक अध्याय से संकलित है। महर्षि चरक ने इस अंश में भोजन संबंधी महत्वपूर्ण नियमों का वर्णन किया है। इसमें बताया गया है कि कैसा भोजन करना चाहिए, कितनी मात्रा में करना चाहिए, कब करना चाहिए और भोजन करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। स्वस्थ जीवन के लिए उचित आहार का ज्ञान अत्यंत आवश्यक है।
प्रमुख बिंदु एवं व्याख्या:
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आहार का महत्व:
- शरीर का मूल आधार आहार है। जैसा आहार होगा, वैसा ही शरीर और मन का स्वास्थ्य होगा।
- आहार केवल पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि शरीर के पोषण, बल, वर्ण (रंग), और ओज (जीवन शक्ति) की वृद्धि के लिए आवश्यक है।
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हिताहार (हितकारी भोजन):
- उष्णमश्नीयात् (गर्म भोजन करना चाहिए): गर्म भोजन स्वादिष्ट लगता है, पाचन अग्नि (जठराग्नि) को बढ़ाता है और भोजन को शीघ्र पचाने में सहायक होता है। यह वात और कफ दोषों का शमन करता है।
- स्निग्धमश्नीयात् (चिकनाई युक्त भोजन करना चाहिए): उचित मात्रा में घी या तेल युक्त भोजन शरीर को स्निग्धता प्रदान करता है, पाचन शक्ति बढ़ाता है, शरीर को पुष्ट करता है, इन्द्रियों को दृढ़ करता है और वर्ण को निखारता है।
- मात्रावदश्नीयात् (उचित मात्रा में भोजन करना चाहिए): न बहुत अधिक, न बहुत कम। उचित मात्रा में किया गया भोजन आयु, बल, सुख और स्वास्थ्य को बढ़ाता है तथा वात, पित्त, कफ तीनों दोषों को पीड़ित किए बिना आसानी से पच जाता है।
- जीर्णे अश्नीयात् (पहले का भोजन पच जाने पर ही भोजन करना चाहिए): जब पहले खाया हुआ भोजन पूरी तरह पच जाए, तभी अगला भोजन करना चाहिए। बिना पचे भोजन करने से अजीर्ण (अपच) होता है, जो अनेक रोगों का कारण बनता है।
- वीर्याविरुद्धमश्नीयात् (परस्पर विरुद्ध वीर्य वाले पदार्थों को साथ नहीं खाना चाहिए): कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे होते हैं जिन्हें एक साथ खाने पर वे शरीर में विषैला प्रभाव डालते हैं (जैसे - दूध के साथ मछली)। ऐसे विरुद्ध आहार से बचना चाहिए।
- इष्टे देशे इष्टसर्वोपकरणं चाश्नीयात् (प्रिय एवं स्वच्छ स्थान पर सभी आवश्यक सामग्री के साथ भोजन करना चाहिए): भोजन का स्थान स्वच्छ, शांत और मन को प्रिय लगना चाहिए। भोजन के लिए आवश्यक बर्तन आदि भी स्वच्छ और सही होने चाहिए। इससे मन प्रसन्न रहता है और पाचन क्रिया ठीक होती है।
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भोजन करने की विधि:
- नातिद्रुतमश्नीयात् (बहुत जल्दी-जल्दी भोजन नहीं करना चाहिए): इससे भोजन ठीक से चबाया नहीं जाता और पाचन में बाधा आती है। कई बार भोजन श्वास नली में अटकने का भय रहता है।
- नातिविलम्बितमश्नीयात् (बहुत धीरे-धीरे भोजन नहीं करना चाहिए): इससे भोजन ठंडा हो जाता है, तृप्ति नहीं होती और अधिक मात्रा में भोजन खा लिया जाता है।
- अजल्पन् अहसन् तन्मना भुञ्जीत (बिना बोले, बिना हँसे, एकाग्रचित्त होकर भोजन करना चाहिए): बोलते हुए या हँसते हुए भोजन करने से भी भोजन के श्वास नली में जाने का खतरा रहता है। भोजन पर ध्यान केंद्रित करने से पाचन रस ठीक से निकलते हैं और पाचन अच्छा होता है।
- आत्मानमभिसमीक्ष्य भुञ्जीत (अपनी प्रकृति और पाचन शक्ति को समझकर भोजन करना चाहिए): प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक प्रकृति (वात, पित्त, कफ) और पाचन शक्ति अलग-अलग होती है। व्यक्ति को यह विचार करना चाहिए कि कौन सा भोजन उसके लिए हितकर है और कौन सा अहितकर, और उसी के अनुसार भोजन करना चाहिए।
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आहार का परिणाम:
- विधिपूर्वक और उचित मात्रा में किया गया हितकर भोजन निश्चित रूप से व्यक्ति के आरोग्य (स्वास्थ्य) और आयु की रक्षा करता है।
- इसके विपरीत, अनुचित विधि से, अनुचित मात्रा में या अहितकर भोजन करना रोगों को जन्म देता है और आयु को क्षीण करता है।
महत्वपूर्ण शब्दावली:
- हिताहारः: लाभप्रद भोजन
- अहिताहारः: हानिकारक भोजन
- उष्णम्: गर्म
- स्निग्धम्: चिकनाई युक्त (घी, तेल आदि से युक्त)
- मात्रावत्: उचित मात्रा में
- जीर्णे: पच जाने पर
- वीर्य: खाद्य पदार्थ का प्रभाव (ठंडा या गर्म)
- विरुद्धम्: प्रतिकूल, मेल न खाने वाला
- द्रुतम्: शीघ्रता से
- विलम्बितम्: देर से
- जल्पन्: बोलते हुए
- हसन्: हँसते हुए
- तन्मनाः: एकाग्रचित्त होकर
- आत्मानमभिसमीक्ष्य: स्वयं का भलीभाँति विचार करके
- अग्निः: जठराग्नि, पाचन शक्ति
- बलम्: शारीरिक शक्ति
- वर्णः: शरीर का रंग, कांति
- आयुः: उम्र, जीवनकाल
- आरोग्यम्: स्वास्थ्य, नीरोगता
परीक्षा की दृष्टि से स्मरणीय तथ्य:
- पाठ का स्रोत: चरकसंहिता (सूत्रस्थान)
- मुख्य विषय: स्वस्थ रहने के लिए भोजन के नियम
- हिताहार के गुण: उष्ण, स्निग्ध, मात्रावत्, जीर्णे भोजन, अविरुद्ध वीर्य, इष्ट देश में भोजन।
- भोजन करने की सही विधि: न अति शीघ्र, न अति विलम्बित, शांतचित्त होकर, अपनी प्रकृति अनुसार।
- नियम पालन का फल: आरोग्य और दीर्घायु।
अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):
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'आहारविचारः' इति पाठः कस्मात् ग्रन्थात् सङ्कलितः?
(क) सुश्रुतसंहितायाः
(ख) चरकसंहितायाः
(ग) अष्टाङ्गहृदयात्
(घ) मनुस्मृतेः -
कीदृशं भोजनं जठराग्निं वर्धयति?
(क) शीतम्
(ख) रूक्षम्
(ग) उष्णम्
(घ) अल्पम् -
'मात्रावत्' इत्यस्य पदस्य कः अर्थः?
(क) अधिक मात्रा में
(ख) अल्प मात्रा में
(ग) उचित मात्रा में
(घ) बिना मात्रा के -
कदा भोजनं कर्तव्यम्?
(क) अजीर्णे (बिना पचे)
(ख) जीर्णे (पच जाने पर)
(ग) यदा कदापि
(घ) रात्रौ एव -
भोजनकाले किं न कर्तव्यम्?
(क) जल्पनम् (बोलना)
(ख) हसनम् (हँसना)
(ग) शीघ्रभोजनम्
(घ) उपर्युक्तानि सर्वाणि (उपरोक्त सभी) -
'स्निग्धम् अश्नीयात्' इत्यस्य कः अभिप्रायः?
(क) रूखा भोजन करना चाहिए
(ख) चिकनाई युक्त भोजन करना चाहिए
(ग) मीठा भोजन करना चाहिए
(घ) तरल भोजन करना चाहिए -
'वीर्याविरुद्धम्' भोजनं किम् भवति?
(क) बलवर्धकम्
(ख) स्वास्थ्यकरम्
(ग) दोषोत्पादकम् (दोष उत्पन्न करने वाला)
(घ) रुचिकरम् -
'तन्मना भूत्वा भुञ्जीत' - अत्र 'तन्मना' पदस्य कः अर्थः?
(क) दुखी मन से
(ख) प्रसन्न मन से
(ग) एकाग्रचित्त होकर
(घ) अन्यमनस्क होकर -
विधिपूर्वकं कृतं भोजनं किं रक्षति?
(क) केवलम् आयुः
(ख) केवलम् आरोग्यम्
(ग) आरोग्यम् आयुश्च उभौ
(घ) केवलं बलम् -
'नातिद्रुतम्' अश्नीयात् - अस्य कोऽर्थः?
(क) बहुत जल्दी नहीं खाना चाहिए
(ख) बहुत धीरे नहीं खाना चाहिए
(ग) गर्म नहीं खाना चाहिए
(घ) ठंडा नहीं खाना चाहिए
उत्तरमाला:
- (ख)
- (ग)
- (ग)
- (ख)
- (घ)
- (ख)
- (ग)
- (ग)
- (ग)
- (क)
मुझे उम्मीद है कि ये नोट्स और प्रश्न आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होंगे। इस पाठ के सिद्धांतों को केवल परीक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि अपने दैनिक जीवन में भी अपनाना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है। यदि कोई और प्रश्न हो तो अवश्य पूछें।