Class 10 Science Notes Chapter 9 (Chapter 9) – Examplar Problems (Hindi) Book

Examplar Problems (Hindi)
चलिए, आज हम कक्षा 10 विज्ञान के अध्याय 9 'अनुवांशिकता एवं जैव विकास' का अध्ययन करेंगे। यह अध्याय सरकारी परीक्षाओं की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, इसलिए हम इसके मुख्य बिंदुओं को विस्तार से समझेंगे।

अध्याय 9: अनुवांशिकता एवं जैव विकास - विस्तृत नोट्स

1. अनुवांशिकता (Heredity):

  • परिभाषा: जनक पीढ़ी से संतति पीढ़ी में लक्षणों (Traits) का संचरण अनुवांशिकता कहलाता है।
  • विभिन्नता (Variation): एक ही जाति के जीवों में तथा एक ही जनक की संतानों में पाई जाने वाली असमानताएँ विभिन्नता कहलाती हैं। लैंगिक जनन करने वाले जीवों में विभिन्नताएं अधिक स्पष्ट होती हैं।
  • विभिन्नता का महत्व: विभिन्नताएं जीवों को बदलते पर्यावरण के प्रति अनुकूलन में सहायता करती हैं और जैव विकास का आधार बनती हैं।

2. प्रजनन के दौरान विभिन्नताओं का संचयन:

  • अलैंगिक जनन: इसमें न्यून विभिन्नताएं उत्पन्न होती हैं, जो मुख्यतः DNA प्रतिकृति (Replication) में त्रुटियों के कारण होती हैं।
  • लैंगिक जनन: इसमें युग्मक निर्माण (अर्धसूत्री विभाजन के दौरान क्रॉसिंग ओवर) और निषेचन (दो भिन्न जनकों के युग्मकों का संलयन) के कारण अधिक विभिन्नताएं उत्पन्न होती हैं। ये विभिन्नताएं पीढ़ी दर पीढ़ी संचित होती जाती हैं।

3. वंशागति के नियम - ग्रेगर जॉन मेंडल का योगदान:

  • मेंडल को 'अनुवांशिकी का जनक' कहा जाता है। उन्होंने मटर के पौधे (पाइसम सैटाइवम - Pisum sativum) पर प्रयोग किए।
  • मेंडल द्वारा मटर के पौधे के चयन के कारण:
    • वार्षिक पौधा, जीवन चक्र छोटा।
    • स्व-परागण तथा पर-परागण आसानी से संभव।
    • स्पष्ट तथा विपरीत लक्षण (जैसे - लंबा/बौना, गोल/झुर्रीदार बीज, पीला/हरा बीज आदि)।
    • एक पीढ़ी में अनेक बीज उत्पन्न होना।
  • एकसंकर संकरण (Monohybrid Cross): जब केवल एक जोड़ी विपरीत लक्षणों की वंशागति का अध्ययन किया जाता है।
    • प्रयोग: शुद्ध लंबे (TT) और शुद्ध बौने (tt) पौधों के बीच संकरण।
    • F1 पीढ़ी (प्रथम संतति पीढ़ी): सभी पौधे लंबे (Tt) प्राप्त हुए। इससे 'प्रभाविता का नियम' (Law of Dominance) प्रतिपादित हुआ, जिसके अनुसार F1 पीढ़ी में केवल प्रभावी लक्षण (लंबापन) ही प्रकट होता है, अप्रभावी लक्षण (बौनापन) छिपा रहता है।
    • F2 पीढ़ी (द्वितीय संतति पीढ़ी): F1 पीढ़ी के स्वपरागण से प्राप्त। इसमें लंबे और बौने पौधे 3:1 के अनुपात (फीनोटाइप अनुपात) में प्राप्त हुए। जीनप्ररूप (जीनोटाइप) अनुपात 1 TT : 2 Tt : 1 tt था।
    • पृथक्करण का नियम (Law of Segregation): F2 पीढ़ी में अप्रभावी लक्षण (बौनापन) पुनः प्रकट हो जाता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि युग्मक निर्माण के समय कारक (जीन) एक-दूसरे से पृथक हो जाते हैं और एक युग्मक में एक लक्षण के लिए एक ही कारक पहुँचता है। इसे 'युग्मकों की शुद्धता का नियम' भी कहते हैं।
  • द्विसंकर संकरण (Dihybrid Cross): जब दो जोड़ी विपरीत लक्षणों की वंशागति का अध्ययन एक साथ किया जाता है।
    • प्रयोग: गोल व पीले बीज (RRYY) वाले पौधे का झुर्रीदार व हरे बीज (rryy) वाले पौधे से संकरण।
    • F1 पीढ़ी: सभी पौधे गोल व पीले बीज (RrYy) वाले प्राप्त हुए।
    • F2 पीढ़ी: F1 पीढ़ी के स्वपरागण से चार प्रकार के पौधे - गोल-पीले, गोल-हरे, झुर्रीदार-पीले, झुर्रीदार-हरे, 9:3:3:1 के अनुपात (फीनोटाइप अनुपात) में प्राप्त हुए।
    • स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment): इस प्रयोग से यह निष्कर्ष निकला कि विभिन्न लक्षणों के कारक (जीन) युग्मक निर्माण के समय एक-दूसरे से स्वतंत्र होकर पृथक होते हैं और संतति में नए संयोग बनाते हैं। एक लक्षण की वंशागति दूसरे लक्षण की वंशागति को प्रभावित नहीं करती।

4. लक्षण कैसे व्यक्त होते हैं?

  • जीन (Gene): DNA का वह खंड जो एक विशिष्ट प्रोटीन के संश्लेषण को कोडित करता है, जीन कहलाता है। जीन अनुवांशिकता की इकाई हैं।
  • DNA (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल): यह अनुवांशिक सूचनाओं का वाहक होता है। कोशिका के केन्द्रक में गुणसूत्रों पर स्थित होता है।
  • प्रोटीन संश्लेषण: जीन में निहित सूचना के अनुसार कोशिका में प्रोटीन का संश्लेषण होता है। ये प्रोटीन एंजाइम या हॉर्मोन हो सकते हैं जो शारीरिक लक्षणों (जैसे - लंबाई, त्वचा का रंग) को नियंत्रित करते हैं। उदाहरण: लम्बेपन के लिए उत्तरदायी जीन अधिक हॉर्मोन बनाता है जिससे पौधा लम्बा होता है।

5. लिंग निर्धारण (Sex Determination):

  • वह प्रक्रिया जिसके द्वारा यह निर्धारित होता है कि संतति नर होगी या मादा।
  • मानव में लिंग निर्धारण:
    • मनुष्य में 23 जोड़ी (46) गुणसूत्र होते हैं। इनमें से 22 जोड़ी अलिंग गुणसूत्र (Autosomes) तथा 1 जोड़ी लिंग गुणसूत्र (Sex chromosomes) होते हैं।
    • मादा में लिंग गुणसूत्र XX होते हैं।
    • नर में लिंग गुणसूत्र XY होते हैं।
    • मादा केवल एक प्रकार के अंडाणु (22+X) बनाती है।
    • नर दो प्रकार के शुक्राणु (22+X) तथा (22+Y) बनाता है।
    • निषेचन के समय यदि X शुक्राणु, अंडाणु (X) से मिलता है, तो संतति मादा (XX) होगी।
    • यदि Y शुक्राणु, अंडाणु (X) से मिलता है, तो संतति नर (XY) होगी।
    • अतः, संतति का लिंग पिता के गुणसूत्र पर निर्भर करता है।

6. जैव विकास (Evolution):

  • परिभाषा: निम्नकोटि के सरल जीवों से क्रमिक परिवर्तनों द्वारा अधिक विकसित जटिल जीवों की उत्पत्ति को जैव विकास कहते हैं। यह एक धीमी और निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
  • उपार्जित लक्षण (Acquired Traits): वे लक्षण जो जीव अपने जीवन काल में वातावरण से प्राप्त करता है (जैसे - अभ्यास से माँसपेशियों का विकास, ज्ञान अर्जित करना)। ये लक्षण DNA में परिवर्तन नहीं लाते और अगली पीढ़ी में वंशागत नहीं होते।
  • आनुवंशिक लक्षण (Inherited Traits): वे लक्षण जो जीव को अपने जनकों से प्राप्त होते हैं और DNA में निहित होते हैं। ये लक्षण अगली पीढ़ी में वंशागत होते हैं। विभिन्नताएं आनुवंशिक होती हैं।
  • जाति उद्भवन (Speciation): नई जातियों के निर्माण की प्रक्रिया। इसके मुख्य कारण हैं:
    • भौगोलिक पृथक्करण (Geographical Isolation): नदी, पहाड़ आदि के कारण एक ही जाति की समष्टियों का अलग हो जाना।
    • आनुवंशिक विचलन (Genetic Drift): किसी समष्टि में अकस्मात् किसी जीन की आवृत्ति में परिवर्तन (विशेषकर छोटी समष्टियों में)।
    • प्राकृतिक चयन (Natural Selection): प्रकृति उन जीवों का चयन करती है जो वातावरण के प्रति बेहतर अनुकूलित होते हैं।
    • DNA में परिवर्तन (Mutation): अचानक होने वाले बड़े परिवर्तन।
    • जनन पृथक्करण (Reproductive Isolation): जब दो उप-समष्टियाँ आपस में जनन करने में अक्षम हो जाती हैं, तो वे नई जातियाँ बन जाती हैं।

7. विकास एवं वर्गीकरण:

  • जीवों का वर्गीकरण उनके विकासीय संबंधों पर आधारित होता है।
  • जिन जीवों के शारीरिक लक्षणों में जितनी अधिक समानता होती है, माना जाता है कि उनका विकास उतने ही निकट पूर्वज से हुआ है और उन्हें वर्गीकरण में एक साथ रखा जाता है।

8. विकासीय संबंध खोजना:

  • समजात अंग (Homologous Organs): वे अंग जिनकी उत्पत्ति और मूल संरचना समान होती है, परन्तु कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं। ये अपसारी विकास (Divergent Evolution) को दर्शाते हैं। उदाहरण: पक्षी के पंख, मनुष्य के हाथ, मेंढक के अग्रपाद, व्हेल के फ्लिपर (सभी की अस्थि संरचना समान)।
  • समरूप अंग (Analogous Organs): वे अंग जिनके कार्य समान होते हैं, परन्तु उत्पत्ति और मूल संरचना भिन्न होती है। ये अभिसारी विकास (Convergent Evolution) को दर्शाते हैं। उदाहरण: कीट के पंख और पक्षी के पंख (कार्य उड़ना, संरचना भिन्न)।
  • जीवाश्म (Fossils): प्राचीन जीवों के परिरक्षित अवशेष या उनके द्वारा चट्टानों पर छोड़ी गई छापें। जीवाश्म जैव विकास के ठोस प्रमाण हैं।
    • जीवाश्म आयु निर्धारण: फॉसिल डेटिंग विधि (कार्बन डेटिंग - C-14) या चट्टानों की परतों के आधार पर सापेक्ष विधि द्वारा।
    • जीवाश्म सरल से जटिल जीवों के विकास क्रम को दर्शाते हैं। आर्कियोप्टेरिक्स (Archaeopteryx) सरीसृप और पक्षियों के बीच की योजक कड़ी का जीवाश्म है।

9. क्रमिक विकास (Evolution by Stages):

  • जटिल अंगों (जैसे - आँख) का विकास अचानक न होकर क्रमिक रूप से हुआ है। प्लेनेरिया की सरल आँख से लेकर कीटों, ऑक्टोपस और कशेरुकियों की जटिल आँखें क्रमिक विकास का उदाहरण हैं।
  • कुछ अंग पहले किसी और कार्य के लिए विकसित हुए और बाद में किसी अन्य कार्य के लिए अनुकूलित हो गए। जैसे - पंख पहले ऊष्मारोधन के लिए विकसित हुए होंगे, बाद में उड़ने के काम आए।
  • कृत्रिम चयन (Artificial Selection) द्वारा मनुष्य ने जंगली गोभी से विभिन्न सब्जियाँ (पत्ता गोभी, फूल गोभी, गांठ गोभी, ब्रोकली आदि) विकसित की हैं, जो जैव विकास का प्रमाण है।

10. विकास को 'प्रगति' के समान नहीं मानना चाहिए:

  • जैव विकास का उद्देश्य अधिक 'प्रगतिशील' या 'बेहतर' जीव उत्पन्न करना नहीं है, बल्कि विभिन्नता उत्पन्न करना और जीवों को बदलते पर्यावरण के अनुकूल बनाना है।
  • मानव विकास की सर्वोच्च सीढ़ी नहीं है; सभी जीवित जातियाँ अपने पर्यावरण में सफल हैं। बैक्टीरिया आज भी सबसे विषम परिस्थितियों में जीवित हैं।

11. मानव विकास (Human Evolution):

  • मानव विकास के अध्ययन के लिए उत्खनन, जीवाश्म अध्ययन, DNA अनुक्रमों का निर्धारण और काल-निर्धारण विधियों का उपयोग किया जाता है।
  • सभी मनुष्यों का उद्भव अफ्रीका में हुआ माना जाता है। वहाँ से वे धीरे-धीरे विश्व के अन्य भागों (मध्य एशिया, यूरेशिया, दक्षिण एशिया, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि) में फैले।
  • मानव (होमो सेपियंस) और चिम्पैंजी के पूर्वज समान थे।

अभ्यास हेतु बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs):

प्रश्न 1: मेंडल ने अपने प्रयोगों के लिए किस पौधे का चयन किया?
(a) गुलाब
(b) मटर
(c) गेंदा
(d) सरसों

प्रश्न 2: मनुष्य में लिंग गुणसूत्रों की जोड़ी होती है:
(a) XX मादा में, XY नर में
(b) XY मादा में, XX नर में
(c) XX दोनों में
(d) XY दोनों में

प्रश्न 3: F2 पीढ़ी में एकसंकर संकरण का लक्षणप्ररूपी (फीनोटाइप) अनुपात होता है:
(a) 1:2:1
(b) 9:3:3:1
(c) 3:1
(d) 1:1

प्रश्न 4: वे अंग जिनकी उत्पत्ति और मूल संरचना समान होती है, परन्तु कार्य भिन्न होते हैं, कहलाते हैं:
(a) समरूप अंग
(b) समजात अंग
(c) अवशेषी अंग
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 5: 'स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम' मेंडल के किस प्रकार के संकरण पर आधारित है?
(a) एकसंकर संकरण
(b) द्विसंकर संकरण
(c) परीक्षार्थ संकरण (Test cross)
(d) प्रतीप संकरण (Back cross)

प्रश्न 6: जीवाश्मों की आयु ज्ञात करने की विधि है:
(a) कार्बन डेटिंग
(b) नाइट्रोजन डेटिंग
(c) ऑक्सीजन डेटिंग
(d) हाइड्रोजन डेटिंग

प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सा लक्षण उपार्जित लक्षण का उदाहरण है?
(a) आँखों का रंग
(b) त्वचा का रंग
(c) शरीर का भार (व्यायाम द्वारा घटाया/बढ़ाया गया)
(d) बालों की प्रकृति

प्रश्न 8: जाति उद्भवन (Speciation) का मुख्य कारण नहीं है:
(a) भौगोलिक पृथक्करण
(b) आनुवंशिक विचलन
(c) उपार्जित लक्षणों की वंशागति
(d) प्राकृतिक चयन

प्रश्न 9: आर्कियोप्टेरिक्स किन दो वर्गों के बीच की योजक कड़ी है?
(a) सरीसृप और स्तनधारी
(b) पक्षी और स्तनधारी
(c) सरीसृप और पक्षी
(d) उभयचर और सरीसृप

प्रश्न 10: मानव में संतान का लिंग निर्धारण किसके गुणसूत्र द्वारा होता है?
(a) माता
(b) पिता
(c) माता और पिता दोनों
(d) दादा-दादी


उत्तरमाला:

  1. (b) मटर
  2. (a) XX मादा में, XY नर में
  3. (c) 3:1
  4. (b) समजात अंग
  5. (b) द्विसंकर संकरण
  6. (a) कार्बन डेटिंग
  7. (c) शरीर का भार (व्यायाम द्वारा घटाया/बढ़ाया गया)
  8. (c) उपार्जित लक्षणों की वंशागति
  9. (c) सरीसृप और पक्षी
  10. (b) पिता

इन नोट्स को ध्यानपूर्वक पढ़ें और प्रश्नों का अभ्यास करें। यह आपकी परीक्षा की तैयारी में सहायक होगा। शुभकामनाएँ!

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